’सितार’



’अभयनन्दन पांडेय’ एम.ए. संगीत (सितार) पी.जी.कॉलेज, गाज़ीपुर उ.प्र.



कसा मिजराब हाथों में, उसे ही प्यार कहते हैं। जो छेड़े उंगलियाँ सरगम, उसे ही तार कहते हैं।। जो रूहों तक पहुंचकर, मन में मेरे शक्ति से भर दे। उसे सहतार कहते हैं, उसे सितार कहते हैं।। चले जब उंगलियां उस पर, मज़ा क्या खूब आता है। हटा कर तम को जैसे, इस धरा पर धूप आता है।। सटे जब डाँड़ सीने से, रूहें भी झूम जाती है। जो जाए काट अगर उंगली, हमें न ये रुलाती है।। उसी सुंदर सी रचना को, नमन शत बार करते हैं। उसे सहतार कहते हैं, उसे सितार कहते हैं।। बजे जब राग पर्दो पर, मनों में चैन आता है। न मन करता है उठने का, वो जब स्वर को लगाता है।। गमक बजते हैं जब उस पर, बदन ये कांप उठता है। मिले जब संगति तबले की, मानो स्वर निखरता है।। जिसे माँ शारदे के रूप में, वरदान कहते हैं। उसे सहतार कहते हैं, उसे सितार कहते हैं।।



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