अपनी ही योजना पर पानी फेर रही सरकार, 25 हजार मदरसा शिक्षकों को 60 माह से नहीं मिला समुचित मानदेय





लखनऊ। केंद्र सरकार ने मदरसों की हालत सुधारने के लिए मदरसा आधुनिकीकरण योजना चलाई है। इसके तहत दीनी तालीम के साथ ही दुनियाबी तालीम भी दी जाती है। इसके अंतर्गत हिंदी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान पढ़ाने के लिए शिक्षक लगाए गए हैं। प्रदेश भर में करीब 25,500 शिक्षक हैं। स्नातक शिक्षकों को आठ हजार रुपये मानदेय मिलता है। इसमें 2000 प्रदेश सरकार और 6000 केंद्र सरकार देती है। परास्नातक शिक्षकों को 15 हजार मानदेय मिलता है। इसमें 12 हजार केंद्र और 3 हजार प्रदेश सरकार देती है। प्रदेश सरकार वर्तमान सत्र में अपने हिस्से का केवल लगभग चार माह का ही बमुश्किल मानदेय दे पायी है, इसमें भी अभी तक प्रदेश के अधिकांश जिलों में राज्यांश मानदेय का भुगतान अब तक नहीं हो पाया है। मजे की बात तो यह है कि इस मामूली मानदेय में भी अधिकारी तथा बाबुओं को कमीशन चाहिए। कमीशन की ताक में बैठे अधिकारी और बाबू मानदेय में हमेशा विलंब करते हैं। ज्ञात हो कि दिसंबर माह में राज्यांश मानदेय दो माह का लगभग आया है, लेकिन अधिकांशतः जिलों से अब तक भुगतान ही नहीं हुआ। केंद्र सरकार ने 60 माह से मानदेय नहीं दिया है। इससे मदरसा शिक्षकों के सामने आर्थिक समस्या खड़ी हो गई है। मदरसा आधुनिकीकरण योजना केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संचालित की जा रही थी, लेकिन इस सत्र से अब अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को अब इसका जिम्मा सौंपा गया है इन दोनों मंत्रालयों के बीच इन शिक्षकों का मानदेय फंसा हुआ है। इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश के 8584 आच्छादित मदरसों में कार्यरत 25500 शिक्षक हैं। पिछले 50 माह से केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने केंद्रांश की धनराशि नहीं दी है, जबकि प्रदेश सरकार भी अपनी ओर से राज्यांश नहीं दे रही है। ऐसी स्थिति में शिक्षक भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। इस संबंध में कई आला अफसरों और मंत्रियों को भी अवगत कराया गया। लेकिन अभी तक मानदेय नहीं मिल सका है।



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