मदर्स डे स्पेशल : कैंसर के अंतिम स्टेज व गरीबी के बावजूद मां ने बेटे को बनाया राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी, कांस्य पदक पर कराया बेटे का कब्जा
आकाश बरनवाल ‘आर्य’
सैदपुर। दुनिया में सबसे ताकतवर अगर कोई होता है तो मां की ममता होती है जो अपने बच्चे की सफलता व सलामती के लिए दुनिया की हर ताकत से जूझने को तैयार हो जाती है। मातृ दिवस पर एक ऐसी ही एक मां की तस्वीर सामने आई है जिसने समाज के तमाम झंझावातों से जूझते हुए आखिरकार अपने बच्चे को उस जगह पर पहुंचाया है, जहां से बच्चे की आंखों से वो पूरी दुनिया की तस्वीर को देखने में सक्षम हुई है। बात मूलतः चंदौली के सकलडीहा स्थित केशवपुर निवासिनी रश्मि श्रीवास्तव की हो रही है, जिन्होंने अब तक कई राष्ट्रीय पदक जीत चुके ताईक्वांडो के राष्ट्रीय खिलाड़ी यानी अपने पुत्र शिवम श्रीवास्तव के सपने को मूर्त रूप देने के लिए अपनी सुविधाओं की परवाह किए बिना परिवार से दूर वाराणसी में किराए के मकान में रहते हुए बच्चे को परिस्थिति के लिए तैयार किया। वो बताती हैं कि शिवम ने 2013 में चंदौली में हुए मंडलीय विद्यालयीय ताइक्वांडो प्रतियोगिता में गाजीपुर के खिलाड़ियों का जलवा देखा, जिसके बाद उसकी इच्छा ताईक्वांडो खिलाड़ी बनने की हुई। शिवम से उसकी इच्छा को जानने के बाद उसकी मां ने पिता के असहयोग के बावजूद 2014 में शिवम को प्रशिक्षण के लिए गैबीपुर स्थित गौतम स्पोर्ट्स एकेडमी के संचालक व ताइक्वांडो कोच अमित कुमार सिंह के पास भेज दिया। बताया कि आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते परिवार से भी उलाहने मिलते, लेकिन किसी तरह से निजी नर्सिंग होम में नर्स की नौकरी से थोड़ी बहुत कमाई करते हुए किसी तरह से वो शिवम का खर्च उठाती रहीं। शिवम ने बताया कि स्टेट व नेशनल स्तर की प्रतियोगिता में खेलने जाने के लिए मां ने कई बार कर्ज तक लेकर उसे खेलने भेजा। इसके अलावा कोच अमित सिंह भी काफी सहयोग करते। मां की इस कठोर तपस्या का परिणाम भी सकारात्मक आया और 2017 में शिवम ने ताबड़तोड़ कई राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर मां समेत जिले का सिर गर्व से ऊंचा किया। शिवम ने बताया कि उसने कर्नाटक के धारवाड़ में हुए जूनियर में पहले राष्ट्रीय पदक के रूप में कांस्य जीता। इसके बाद लगातार 2 बार विद्यालयीय राज्य प्रतियोगिता में स्वर्ण व दो नेशनल में प्रतिभाग किया। भावुक होकर शिवम ने बताया कि मुझे राष्ट्रीय फलक पर चमकाने वाली मेरी मां इस समय कैंसर से पीड़ित हैं, लेकिन कैंसर पीड़ित होने के बावजूद उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाना नहीं छोड़ा, जिसका नतीजा ये रहा कि इसी वर्ष जनवरी में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुए राष्ट्रीय क्वान की डो प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतने में सफल रहा। कहा कि डॉक्टरों के अनुसार मां का कैंसर काफी गंभीर स्टेज में है लेकिन आज इस हाल में होने के बावजूद मुझे मेरी मां ने मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है। आज मैं जो भी हूं, मां की वजह से हूं। वहीं शिवम के बाबत उनके कोच अमित सिंह ने बताया कि ब्लैक बेल्ट हासिल कर चुका शिवम काफी आक्रामक खिलाड़ी है। वर्तमान में ये एकेडमी के हॉस्टल में ही रहकर प्रशिक्षण ले रहा है और इस सत्र में अपना पहला सीनियर वर्ग में मैच खेलेगा।