सिधौना : अब धनतेरस नहीं बल्कि इस विशेष खगोलीय अवसर पर मनेगा आयुर्वेद दिवस, आयुष राज्यमंत्री ने बताई ये बात


सिधौना। केंद्र सरकार ने 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस मनाने की तिथि निर्धारित कर दी है। खगोलीय विषुव अवस्था में इस विशेष तिथि पर दिन और रात दोनों समान अवधि के होते है। आयुष राज्यमंत्री डॉ दयाशंकर मिश्रा ने बताया कि अब तक आयुर्वेद दिवस धनतेरस को मनाया जाता था। हिंदी पंचांग में धनतेरस की तारीख हर साल बदलने से आयुर्वेद दिवस की तारिख निश्चित नहीं थी। आयुर्वेद दिवस को हर साल आयुर्वेद को एक वैज्ञानिक साक्ष्य आधारित व समग्र चिकित्सा प्रणाली के रूप में बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता रहा है। जो निवारक स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रकृति आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है, जो प्रत्येक व्यक्ति के अद्वितीय संविधान को संदर्भित करता है। ये उनके शरीर में तीन दोषों के अनुपात से निर्धारित होता है। प्रकृति हमारे व्यक्तित्व, वरीयताओं, शक्तियों और कमजोरियों को प्रभावित करती है। आयुर्वेद में ज्यादातर पोषण, जीवनशैली में बदलाव और प्राकृतिक उपचार का इस्तेमाल किया जाता है। यह पद्धति इस विश्वास पर आधारित है कि शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती, मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन पर निर्भर करती है। आयुर्वेद का उद्देश्य आहार, जीवनशैली, जड़ी बूटियों, योग और ध्यान जैसे प्राकृतिक तरीकों के माध्यम से इस संतुलन को बहाल करके बीमारियों को रोकना और उनका इलाज करना है। ईशोपुर की डॉ समीक्षा बरनवाल ने कहा कि सम्पूर्ण आयुर्वेदीय चिकित्सा के आठ अंग माने गए हैं। कार्य चिकित्सा, शल्यतन्त्र, शालक्य तन्त्र, कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, भूतविद्या, रसायन तन्त्र और वाजीकरण है। आयुर्वेद का लक्ष्य व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार दोषों के सामंजस्य को बनाए रखना या पुनर्स्थापित करना है। आयुर्वेद चिकित्सा की एक समग्र प्रणाली है जो स्वास्थ्य एवं तंदुरुस्ती के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह पांच तत्वों, तीन दोषों, जीवन के चार चरणों, छह स्वादों और अग्नि की अवधारणा के मुख्य मौलिक सिद्धांतों पर आधारित है।