वक्त दर वक्त तेजी से बदल गईं महाशिवरात्रि मेले की लोक परंपराएं, सूनापन लिए बीत जा रहे मेले
खानपुर। महाशिवरात्रि के दूसरे दिन सैदपुर क्षेत्र के सभी शिवालयों पर पूजा पाठ और लघु मेले का आयोजन चलता रहा। गंगा गोमती के संगम तट पर कैथी के मार्कण्डेय महादेव धाम पर महाशिवरात्रि के दूसरे दिन मेले में भारी संख्या में महिलाओं सहित पुरुषों की भीड़ उमड़ी। कोरोनाकाल में प्रतिबंध के चलते इस वर्ष सार्वजनिक मेला में आने वालों की संख्या बहुत सीमित रही। चारपाई के पावा, लाल भराउ मिर्चा, मिट्टी के खिलौने, पके बेर के लिए संगम स्थित महाशिवरात्रि का ये मेला पूरे पूर्वांचल में प्रसिद्ध रहा है। महाशिवरात्रि मेले में भेड़ की लड़ाई आकर्षण के केंद्र रहते थे। जौनपुर, आजमगढ़, बलिया, मऊ, वाराणसी और चंदौली के लोग चारपाई, मचिया एवं खटोला के पावा खरीदने के लिए शिवरात्रि के मेले में आते थे। लेकिन अब प्रचलन से दूर हो रहे चारपाई से लकड़ी के पावा की बिक्री बंद हो गई है। पिज्जा-बर्गर, चाट व चाउमीन की पसंदगी ने बेर व मकोय जैसे फलों की बिक्री को बहुत प्रभावित किया है। मोबाइल में व्यस्त बच्चों का बालपन मिट्टी के खिलौनों और गुड़िया गुड्डी के खेल से दूर हो गया है। गोमती नदी किनारे लोगों का हुजूम दो दिवसीय मेले में अपने भूले बिसरे रिश्तेदारों को पाकर महिलाएं भावुक हो जाती थी और उनका मैत्रीपूर्ण विलाप सुनकर हर कोई भावुक हो जाता था। पचासों किलोमीटर की लंबी दूरी तय कर मेला देखने आने वाले श्रद्धालुओं के आवागमन से पूरा क्षेत्र पहले मेले सदृश्य हो जाता था। लेकिन अब परिवहन एवं साधन सड़क की सुविधा के बीच मेले में सर्कस, लौंडा नाच, कठपुतली, जोकर की चुहलबाजी, बाइस्कोप, भूल भुलैया जैसे मनोरंजन में कमी इस महाशिवरात्रि पर्व को प्रभावित कर रहा है।