पर्यावरणीय असंतुलन से गायब होते जा रहे कौए, पितृपक्ष में पितरों को कैसे करें तृप्त
खानपुर। पितरों को तृप्त करने का पखवारा पितृपक्ष शुरू हो गया है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि शनिवार से पितृपक्ष शुरू होकर अगले 25 सितंबर को पखवारा खत्म होगा। इस साल श्राद्ध पक्ष 15 दिन की बजाए 16 दिन तक रहेगा। ऐसा संयोग 16 सालों के बाद आया है, जिसमें पितृपक्ष के बीच के एक दिन यानी 17 सितंबर को कोई श्राद्ध कर्म नहीं किए जाएंगे। बता दें कि पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए कौआ, कुत्ता या गाय को निवाला खिलाकर पितरों को तृप्त करने की मान्यता है। आमतौर पर घर की छत, मुंडेर या चहारदीवारी पर सुबह कौए का बोलना किसी मेहमान के आगमन का प्रतीक होता है। वहीं पितृपक्ष में कौए को भोजन कराना शुभ माना गया है। लेकिन अब घर की मुंडेर पर न तो कौए नजर आते हैं और न ही उनकी कांव-कांव सुनाई देती है। दो दशक से लगातार कौओं की संख्या घट रही है। पितृपक्ष में पूड़ी और हलवा लेकर लोग कौओं की तलाश करते हैं। पर्यावरणीय बदलाव, मोबाइल रेडिएशन से कौओं की संख्या लगातार घट रही है। पर्यावरण प्रेमी और कर्मकांडी लोग कौआ की घटती संख्या से काफी चिंतित हैं। विलुप्त हो रहे पक्षियों में कौआ और गिद्ध दोनों ही मृत पशुओं का मांस खाकर पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं। पिछले दो दशक से दोनों ही पक्षियों की संख्या में काफी कमी आने लगी है। पशुओं के उपचार में दी जाने वाली प्रतिबंधित डाइक्लोफेनिक दवाइयां इन पक्षियों के लिए घातक सिद्ध हुईं है। दवा प्रभावित मृत पशुओं को जब कौआ व गिद्ध उनका मांस खाते हैं तो उस दवा के प्रभाव से इनकी मौत हो जाती है। फसलों में कीटनाशक दवाओं का अधिक प्रयोग किए जाने से कीट-पतंगों में भी कमी हो रही है। जिससे पक्षियों का भोजन घट रहा है। खाना, पानी या अन्य माध्यमों से कीटनाशकों का जहर इनके शरीर में पहुंचने से कौओं की प्रजनन क्षमता कम हो रही है। कौओं को पितृपक्ष में पितरों का स्वरूप मानकर श्रद्धापूर्वक व विनम्रता के साथ भोजन कराया जाता है। पितृपक्ष में पितरों को श्रद्धा भोग अर्पण और तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष के दौरान पूर्वज अपने वंशजों को आशीर्वाद देने आते हैं और उनकी कृपा से जीवन में चल रही तमाम समस्याएं खत्म हो जाती है। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म के अलावा गरीबों एवं जरूरतमंदों को दान देना भी बहुत फलदायी माना जाता है।