विश्व यकृत दिवस पर चिकित्सकों ने गिनाए स्वस्थ लिवर के लाभ, विरेचन विधि की बताई खूबी





खानपुर। लिवर हमारे शरीर का सबसे अहम अंग है, जो हमारे पाचनक्रिया में अहम भूमिका निभाता है। लिवर यानी यकृत शरीर में मौजूद टॉक्सिन को बाहर निकालता है। विश्व यकृत दिवस पर स्वास्थ्य केंद्रों में लोगों को अपने खानपान योगा और इलाज के माध्यम से लिवर को दुरुस्त रखने की सलाह दी गई। गोरखा के आयुर्वेदिक डॉ सन्तप्रकाश सिंह ने कहा कि ज्यादातर लिवर की खराबी अधिक तेल मसाले वाला भोजन, ज्यादा शराब पीने या बाहर का तलाभुना खाना अधिक खाने के कारण होता हैं। लिवर रोग का आयुर्वेदिक इलाज विशेषकर विरेचन कर्म द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत जड़ी बूटियों और औषधियों की सहायता से पेशेंट को दस्त होता है, जिससे शरीर में पैदा हुए विषाक्त को दूर किया जाता है। विरेचन पंचकर्म चिकित्सा पद्धति की ही एक चिकित्सा विधा है। जिसके माध्यम से शरीर का शुद्धिकरण यानि डिटॉक्सिफिकेशन किया जाता है। विरेचन चिकित्सा के द्वारा शरीर में जमी गंदगी और विषाक्त पदार्थों को हर्बल औषधियों के माध्यम से गुदा के रास्ते से बाहर निकाल दिया जाता है। जब मरीज के शरीर में पित्त दोष की अधिकता हो जाती है तो विरेचन थेरेपी के माध्यम से शरीर की गंदगी साफ किया जाता है जिससे शरीर में शुद्ध रक्त बहने लगता है। आयुर्वेद शास्त्र में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्राचीन काल में पंचकर्म कर्म चिकित्सा पद्धति के पांच कर्म होते है। वमन, विरेचन, बस्ती, नस्य और रक्त मोक्षण कर्म। ये सभी पंचकर्म मरीज के रोग की स्थिति के आधार पर आयुर्वेदिक चिकित्सक करते हैं। सिधौना वेलनेस सेंटर के विनय गुप्ता बताते है कि नियमित योगाभ्यास के अनुलोम विलोम, प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम को सुबह करने से लिवर की बीमारी नही होती है और बीमार लोगों को इन योग कलाओं से जल्दी मुक्ति मिल जाती है।



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