रावण की वजह से रखी जा सकी थी लंका में पुल की आधारशिला, किया था धर्म के साथ युद्ध - मानस चातकी
देवकली। स्थानीय ब्रह्म स्थल परिसर में चल रहे मानस सम्मेलन के छठें दिन मानस चातकी वैदेही ने प्रवचन किया। कहा कि रामचरित मानस का अनुशीलन आवश्यक है। जिसके सभी पात्र आदर्श से परिपूर्ण हैं। इस ग्रन्थ में जीवन जीने की सम्पूर्ण शिक्षा मिलती है। जिस दिन सास अपनी बहू को बेटी मान लेगी, उसी दिन परिवार स्वर्ग हो जायेगा। कहा कि समुद्र पर शिवलिंग की स्थापना लंकापति रावण ने कराया था। जब शिवलिंग स्थापना का उदेश्य रावण ने पूछा तो जामवन्त ने कहा कि लंका पर विजय प्राप्त करने लिए पुल बनाकर शिवलिंग की स्थापना की जा रही है, ये जानने के बावजूद रावण ने बिना राग द्वेष के अपना सर्वनाश जानते हुए भी पूजन कराया। कहा कि लंका से आते समय मां सीता को भी वो अपने साथ ले आया था, क्योंकि वो जानता था कि हिंदू धर्म में बिना पत्नी के कोई अनुष्ठान पूर्ण नहीं हो सकता। इस दौरान श्रीराम ने भी मर्यादा का मान रखते हुए माता सीता को समुद्र तट से जबरदस्ती नहीं हासिल किया। पूजन के बाद रावण उन्हें पुनः साथ लेकर गया। कहा कि शत्रु कैसा होना चाहिए, धर्म के साथ युद्ध कैसे करना चाहिए, ये रावण से सीखना चाहिए। कहा कि आज का दुश्मन पीछे से घात लगाकर वार करता है। राम-रावण युद्ध व महाभारत युद्ध सूर्यास्त होने पर खत्म व सूर्योदय के बाद शंख ध्वनि करके शुरू किया जाता था। इस दौरान भगवान राम-सीता विवाह की भव्य झांकी भी निकाली गई। इस मौके पर प्रभुनाथ पाण्डेय, अरविन्द लाल श्रीवास्तव आदि रहे।