‘सूली पर चढ़ना पसंद है लेकिन माफी नहीं मांगूगा’, इस मशहूर शायर की जयंती पर हुई अदबी गोष्ठी का आयोजन





दिलदारनगर। मजरूह सुल्तानपुरी की स्मृति में शुक्रवार की रात अदबी गोष्ठी का आयोजन किया गया। वरिष्ठ पत्रकार व कवि जनार्दन ज्वाला ने कहा कि मजरूह सुल्तानपुरी उर्दू हिंदी शायरी में एक बड़ा नाम है। ‘मैं अकेले ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग मिलते गए और कारवाँ बनता गया, ये उनकी सबसे मशहूर शायरी है। कहा कि सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को निजामाबाद में हुआ था और 2000 में उनका निधन हो गया। जिंदगी के इस लंबे सफर में उन्होंने उर्दू शायरी और हिंदी फिल्मों को अपनी रचनाओं के माध्यम से बहुत समृद्ध किया। अगली आने वाली पीढ़ियों को उनकी रचनाएं एक रोशनी के रूप में मार्गदर्शन करती रहेंगी। कहा कि मजरूह साहब को फिल्म जगत में कई फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। फिल्म जगत का सबसे बड़ा दादा साहब फाल्के अवार्ड भी उन्हें मिल चुका है। कहा कि सुल्तानपुरी ने कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया। अपनी एक रचना के कारण ही उन्हें एक बार जेल भी जाना पड़ा। लेकिन उन्होंने उसके लिए माफी नहीं मांगी और कहा सूली चढ़ना पसंद करूंगा लेकिन माफी नहीं मांगूगा। जेल में रहकर उन्होंने अपनी शायरी को और समृद्ध बनाया। इस मौके पर प्रेम कुमार सिंह, खुर्शीद दिलदार नगरी, साहिर लुधियानवी, तौसीफ़ गोया, मास्टर नियाज अहमद आदि रहे। अध्यक्षता गीतकार सुरेंद्र आर्य व संचालन रोहित पटवा ने किया।



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