महाहर धाम में महाशिवरात्रि पर भोर से ही लगी श्रद्धालुओं की भीड़, जलाभिषेक कर मांगी मन्नतें





मरदह। महाशिवरात्रि पर्व के मौके पर तीन दिवसीय मेले का शुभारंभ किया गया। इस दौरान मंदिर में भोर से ही दर्शनार्थियों की भारी भीड़ ली रही। साफ सफाई के साथ ही बैरिकेडिंग व सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त रही। महाहर धाम जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थानीय विकासखंड के सुलेमापुर देवकली गांव स्थित सिद्धपीठ शिवस्थली महाहर धाम भक्तों के लिए आस्था एवं विश्वास का बड़ा केन्द्र है। इसकी एक अलग अपनी पहचान है। शिवस्थली के रूप में इसका नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उत्तरी भाग पर स्थित इस धाम पर जहां महाशिवरात्रि पर भक्तों का रेला उमङता है। वही पूरे सावन माह मंदिर परिसर घंटों की आवाज से गुंजायमान रहता है। जहाँ पर एक तरफ पूरे पूर्वांचल के जिले सहित पड़ोसी राज्य के भी श्रद्धालु इस धाम पर पहुंचकर दर्शन पूजन कर बाबा भोलेनाथ से मन चाहा मुराद मांगते हैं। इस धाम कि ऐसी मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप कट जाते हैं। सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद भोले पूरी करते हैं। कहां जाता है कि इस धाम का निर्माण राजा दशरथ ने कराया था। यह महल दशरथ के गढ़ी के नाम से विख्यात है। वेदों व पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार श्रवण कुमार की यही पर राजा दशरथ के चलाए गए शब्दभेदी बाण से मृत्यु हो गई थी। धाम के दक्षिण तरफ श्रवणडीह नाम का गांव भी विद्यमान है, जहां पहले से बनाया गया श्रवण कुमार का मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है। धाम परिसर में शिव मंदिर के अलावा भगवान हनुमान, भैरव - बाबा, संत रविदास, भगवान ब्रह्मा की चार मुखी प्रतिमा, माँ दुर्गा की प्रतिमा, राधा - कृष्ण, राम - लक्ष्मण - जानकी, की प्रतिमा सहित कई देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई है। तेरह मुखी मुख्य शिवलिंग के साथ ही शिव - पार्वती की युगल मूर्ति भी अद्भुत व पूजनीय है। मंदिर के सामने उत्तर से दक्षिण तरफ दिशा में एक किलोमीटर तक लम्बा सरोवर है, जहां हजारों वर्ष पहले इस स्थान पर माँ गंगा का प्रवाह था, जो अब पूरईन झील के रूप में रह गया है। सावन के प्रत्येक सोमवार को जलाभिषेक के लिए यहां कांवरियो का रेला उमड़ता है।



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