विलुप्तप्रायः लौंडा नाच को मिलेगी संजीवनी, रामचंद्र मांझी को पद्श्री मिलने से जगी उम्मीद


खानपुर। पूर्वांचल में अपनी लोकप्रियता खो रही लौंडा नाच को एक बार फिर जीवनदान मिलने की उम्मीद है। गणतंत्र दिवस पर रामचंद्र मांझी को इसी कला के लिए पद्मश्री मिलने पर इस विधा से जुड़े लोग उत्साहित है। खानपुर क्षेत्र के बभनौली निवासी 90 वर्षीय लालचंद पांडेय ने बताया कि एक ज़माना था जब परिवार या समाज में किसी भी उत्सव पर बड़े अरमान से लौंडा नाच करवाया जाता था। इस नाच की लोकप्रियता का आलम यह था कि जब कोई युवक अपने पूरे स्त्री वेश में मंच पर ठुमके लगाता तो शामियाने बंदूक की गोलियों से छलनी हो जाया करते थे। बिना लौंडा नाच के गांव में कोई शादी समारोह नहीं होते थे। किसी लड़के को स्त्री वेश में ठुमके लगाने से दर्शक इतने दीवाने हो जाते थे उस पर जमकर रुपए आदि बरसाते। वर्तमान कलाकार सिधौना के अरविंद गुप्ता कहते है कि समाज में अब लौंडा नाच हाशिये पर खड़ा है। किसी भी उत्सव या जलसे पर लोग नेपाल, बंगाल या भारत के किसी भी राज्य से लाई गई लड़कियों या किन्नरों को नचाना ज्यादा पसंद करते हैं। भिखारी ठाकुर की परंपरा भोजपुरी गीतों के नृत्य पर में फिल्मी गीतों का अश्लील नाच हावी हो गया है। जिले में अब गिने-चुने ही लौंडा नाच मंडली बची है जो इस विधा को जिन्दा रखे हुए है पर वे भी खस्ताहाल हैं। नाच मंडली में अब कलाकार नहीं बचे हैं। वे गरीबी और बेरोजगारी के चलते बड़े शहरों में रोटी की तलाश में पलायन कर चुके हैं। गांव में लौंडा नाच अब लोगों की स्मृति में ही सुरक्षित रह गई है। बताया कि मेरे साथ करीब आधा दर्जन इस विधा के कलाकार है जो शौकिया तौर पर होली, रामलीला, दुर्गापूजा और छोटे-मोटे कार्यक्रमों में लौंडा नृत्य करने जाते है। हालांकि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह हमेशा इस कलाकारी को अपने कार्यक्रमों में स्थान देते रहते थे।