गाजीपुर : नवजात शिशुओं के लिए स्वास्थ्य विभाग ने चलाया अभियान, उनके 7 अधिकारों के बाबत लोगों को किया जागरूक





ग़ाज़ीपुर। स्वास्थ्य विभाग ने नवजात शिशु को भी एक दो नहीं बल्कि 7 तरीकों के अधिकार देने के लिए 1 से 7 नवंबर तक नवजात शिशु देखभाल सप्ताह मनाया। जिसके तहत जन्म के बाद शीघ्र स्तनपान, जीरो डोज टीकाकरण, 102 एंबुलेंस सेवा, अस्पताल से ही जन्म प्रमाण पत्र, कंगारू मदर केयर, गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल और प्रत्येक बीमारी की शीघ्र पहचान के साथ इलाज को शिशु का हक बताया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ सुनील कुमार पांडे ने बताया कि बच्चे के जन्म से लेकर 28 दिन की अवस्था तक उसे नवजात शिशु कहा जाता है। प्रत्येक नवजात शिशु के सात प्रमुख ऐसे अधिकार हैं, जो उसके सुखमय भविष्य का आधार बन सकते हैं। सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिये नवजात शिशु को यह सेवाएं उपलब्ध करवा रही है। इन अधिकारों और सेवाओं के प्रति जनजागरूकता का स्तर बढ़ाने के लिए प्रत्येक वर्ष एक से सात नवम्बर तक नवजात शिशु देखभाल सप्ताह मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि जन्म के बाद शीघ्र स्तनपान, जीरो डोज टीकाकरण, 102 एम्बुलेंस सेवा, अस्पताल से ही जन्म प्रमाण पत्र, कंगारू मदर केयर, गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल और प्रत्येक बीमारी की शीघ्र पहचान के साथ इलाज के अधिकार नवजात शिशुओं को दिए गए हैं। बताया कि बच्चे के जन्म के बाद उसे तुरंत मां का गाढ़ा पीला दूध पिलाया जाना चाहिए। इस दूध में मौजूद कोलेस्ट्रम नवजात शिशु को रोगों से लड़ने की ताकत प्रदान करता है। सरकारी अस्पताल में संस्थागत प्रसव के बाद उपलब्ध स्टॉफ मां को तुरंत स्तनपान के लिए प्रेरित करते हैं। जन्म के 24 घंटे के भीतर प्रत्येक नवजात शिशु को ओपीवी, बीसीजी और हेपेटाइटिस बी का टीका लगाया जाता है, ताकि उसका संक्रमण और बीमारियों से बचाव हो सके। नवजात शिशु का स्वास्थ्य खराब होने पर उसे प्रत्येक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाने और घर वापस लौटने की सुविधा के लिए सरकारी खर्चे पर 102 नंबर एम्बुलेंस की सेवा दी जा रही है। संस्थागत प्रसव करवाने वाली माताओं के नवजात शिशुओं को सरकारी अस्पताल से ही जन्म प्रमाण पत्र निर्गत किया जा रहा है और इस प्रमाण पत्र के बाद गांव, ब्लॉक या नगर निगम से कोई अन्य जन्म संबंधी प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता नहीं है। कम वजन वाले बच्चों और हाइपोथर्मिया से बचाव के लिए बच्चों की मां या परिवार के किसी एक सदस्य को कंगारू मदर केयर सिखाया जाता है। इसके तहत नवजात शिशु को शरीर से चिपकाकर रखना होता है। इससे बच्चों का वजन तो बढ़ता ही है, साथ में ठंड से भी उनका बचाव होता है। इसके लिए अस्पतालों में केएमसी कार्नर भी बनाये गये हैं। जब नवजात शिशु डिस्चार्ज होकर घर चले जाते हैं तो आशा कार्यकर्ता उनके घर जाकर गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (एचबीएनसी) करती हैं। बताया कि स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत होने पर नवजात को तुरंत एम्बुलेंस की सहायता से नजदीकी अस्पताल भेजने का प्रावधान है। नवजात शिशु को बीमारी या संक्रमण होने पर नजदीकी न्यू बोर्न स्टेबलाइज़ेशन यूनिट (एनबीएसयू) या स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) पर भेजा जाता है। स्थिति ज्यादा गंभीर होने पर उसे नवजात शिशु गहन देखभाल इकाई (एनआईसीयू) में भी रेफर किया जाता है। जिले के प्रत्येक ब्लॉक में सक्रिय राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) टीम को दिशा निर्देश है कि वह प्रसव केंद्र से ही जन्मजात विकृति वाले नवजात शिशुओं को चिन्हित करें और योजना के तहत इलाज की सुविधा दिलवाएं। सीएमओ ने बताया कि इलाज के बाद जो नवजात शिशु एनबीएसयू और एसएनसीयू से स्वस्थ होकर घर चले जाते हैं, उनका भी समुदाय स्तर पर फॉलो अप किया जाता है।



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