जखनियां : सैकड़ों साल पुराने हथियाराम मठ में धूमधाम व हर्षोल्लास से मना विजयादशमी का पर्व, देशभर से उमड़े भक्त





जखनियां। सिद्धपीठ हथियाराम मठ में विजयादशमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति द्वारा वैदिक विधि विधान से पारंपरिक पंच पूजा का कार्यक्रम संपन्न हुआ। जिसमें ध्वज पूजन, शक्ति पूजन, शास्त्र पूजन, शस्त्र पूजन, शमी पूजन किया गया। पूजन के उपरांत महाराज ने शिष्यों संग गरल पान करने वाले भगवान नीलकंठ का दर्शन किया तथा अभ्यागतों सहित उपस्थित जनमानस को संबोधित किया। विजयादशमी उत्सव के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पद्मभूषण प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी तथा बतौर विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय विवि झारखंड के कुलाधिपति प्रो. जेपी लाल, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. आंनद त्यागी, सिद्धार्थ विवि कपिलवस्तु की कुलपति प्रो. कविता शाह, देवरिया के जिलाधिकारी अखण्ड प्रताप सिंह, कुटुम्ब प्रबोधन के प्रांत अधिकारी डॉ. शुकदेव त्रिपाठी, जंगीपुर विधायक डॉ. वीरेन्द्र यादव, डॉ. रमाशंकर राजभर आदि लोग शामिल हुए। कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. रत्नाकर त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए मठ की ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला। प्रो. आंनद त्यागी ने कहा कि सिद्धपीठ के प्रतिनिधि के रूप में महाराज इस क्षेत्र के आध्यात्मिक विकास के साथ ही सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिए सतत् प्रयासरत रहते हैं। कहा कि पीठाधिपति ने केवल बातें नहीं की हैं बल्कि समता, समानता, संस्कार, शिक्षा के लिए यत्न किया है, जिसकी पुष्टि आज के समारोह में सभी वर्गों की उपस्थिति है। मुख्य अतिथि ने कहा कि संस्कृत हमारी संस्कृति का आधार है। इस आध्यात्मिक पीठ पर आने से यह बोध होता है कि हम किसी दूसरी पुरी में आ गए हैं। स्वामी भवानी नन्दन यति ने कहा कि समय द्रुत गति से निकल रहा है, हमें इसकी पहचान करनी होगी। कुम्हार कभी भी टूटे घड़े को चाक पर नहीं चढ़ाता है। वह दूसरी मिट्टी लेकर सृजन करता है। यह भौतिक शरीर मिट्टी घड़े के समान है। यदि हम राष्ट्र और समाज के लिए इस जीवन में कुछ कर जाएं तो यही इस जीवन की सार्थकता होगी। इस दौरान कार्यक्रम में हथियाराम के जूनियर हाई स्कूल की छात्राओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। संचालन प्रो. सानन्द सिंह ने किया। वहीं मुख्य यजमान झुन्ना सिंह ने अतिथियों को अंगवस्त्र, रुद्राक्ष की माला तथा बुढ़िया माई का भोग प्रसाद दिया।



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