पल्स पोलियो अभियान की तरह अब घरों में जाकर कुष्ठ रोगियों को खोजेंगे स्वास्थ्यकर्मी, बीमारों के लिए बड़ी सौगात





गोरखपुर। वर्ष 2030 तक जनपद को कुष्ठ से मुक्त करने के लिए प्रयासों की कड़ी में 21 दिसम्बर से 4 जनवरी तक कुष्ठ रोगी खोजी अभियान चलाया जाएगा। इस बार का अभियान पल्स पोलियो की तरह चलेगा, जिसमें घर घर जाकर स्वास्थ्य विभाग की टीम नये कुष्ठ रोगियों को खोजेगी। इस संबंध में सभी अधीक्षक और प्रभारी चिकित्सा अधिकारी को मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के प्रेरणा श्री सभागार में सोमवार को प्रशिक्षित किया गया। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ गणेश यादव ने कहा कि नये रोगी खोजने के साथ ही समाज में यह संदेश प्रसारित करना होगा कि कुष्ठ रोग न तो अनुवांशिक है और न ही यह पूर्व जन्म के कर्म का फल है। यह एक बीमारी है, जो बैक्टीरिया से होती है। अगर कुष्ठ की समय से पहचान हो जाए तो यह छह माह से एक वर्ष के भीतर इलाज से ठीक हो जाता है। इलाज की सुविधा ब्लॉक स्तरीय अस्पतालों, बीआरडी मेडिकल कॉलेज और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर में उपलब्ध है। कुष्ठ की पहचान कर शीघ्र इलाज कर देने से मरीज दिव्यांगता और विकृति के खतरे से बच जाता है। अगर शरीर के किसी अंग में कोई सुन्न दाग या धब्बा है जिसका रंग चमड़ी के रंग से हल्का है तो यह कुष्ठ भी हो सकता है। ऐसा लक्षण दिखने पर अभियान के दौरान घर आने वाली स्वास्थ्य विभाग की टीम को सभी लोग जानकारी दें। ऐसे लोगों की जांच कराई जाएगी और कुष्ठ मिलने पर सम्पूर्ण इलाज किया जाएगा। डॉ यादव ने बताया कि कुष्ठ में सुन्न दाग धब्बों की संख्या जब पांच या पांच से कम होती है और कोई नस प्रभावित नहीं होती या केवल एक नस प्रभावित होती है तो मरीज को पासी बेसिलाई (पीबी) कुष्ठ रोगी कहते हैं, जो छह माह के इलाज में ठीक हो जाता है। अगर सुन्न दाग धब्बों की संख्या छह या छह से अधिक हो और दो या दो से अधिक नसें प्रभावित हों तो ऐसे रोगी को मल्टी बेसिलाई (एमबी) कुष्ठ रोगी कहते हैं और इनका इलाज होने पर साल भर का समय लगता है। कुष्ठ रोगी को छूने और हाथ मिलाने से इस रोग का प्रसार नहीं होता। रोगी से अधिक समय तक अति निकट संपर्क में रहने पर उसके ड्रॉपलेट्स के जरिये ही बीमारी का संक्रमण हो सकता है। इस मौके पर कुष्ठ रोग विभाग से डॉ भोला गुप्ता, डॉ आरिफ, महेंद्र चौधरी आदि मौजूद रहे।



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