कोरोना नियंत्रण के यज्ञ में मां की ममता का दांव लगाकर जुटी रही आधी आबादी, 5500 से अधिक महिला योद्धाओं ने दिया था योगदान
गोरखपुर। दो साल तक के छोटे बच्चों के साथ कोरोना योद्धा के तौर पर अग्रिम पंक्ति में कार्य कर जिले की आधी आबादी ने एक मिसाल पेश की है। आशा, एएनएम, चिकित्सक और स्टॉफ नर्स जैसी भूमिकाओं के जरिये कोरोना नियंत्रण के यज्ञ में मां की ममता को भी दांव लगा कर जिम्मेदारी निभाया और समुदाय के लिए भी मां की भूमिका में रहीं। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर स्वास्थ्य विभाग से जुड़ीं ऐसी 5500 से अधिक कोरोना योद्धाओं के प्रति जनपदवासी कृतज्ञ है। नंदानगर निवासी आशा कार्यकर्ता सिंधु देवी (23) फरवरी 2020 में ही आशा के तौर पर स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी और मार्च में कोविड का संक्रमण फैलने लगा। स्वास्थ्य सेवा संबंधित योगदान देने के लिए आशा कार्यकर्ता बनीं सिंधु के लिए शुरुआती दौर ही चुनौतीपूर्ण रहा। सिंधु बताती हैं कि कोविड का पहला चरण ऐसा था जिसमें दिन भर काम करने के बाद कई बार देर शाम तक घर लौटना होता था। घर-घर मरीजों को ढूंढना पड़ता था। उस समय उनके छह माह के बच्चे की देखभाल उनकी सास करती थीं। बच्चे को स्तनपान दिन भर के बाद ही करा पाती थीं और उस दौरान कोविड से बचाव के लिए एहतियातन मास्क लगाना पड़ता था। सिंधु कहती हैं कि परिवार के सहयोग के बिना सामुदायिक योगदान संभव न हो पाता। जंगल कौड़िया में एएनएम विनीता वर्मा (32) का जीवन और चुनौतीपूर्ण रहा। उनके पति विमल वर्मा स्वास्थ्य विभाग में रैपिड रिस्पांस टीम (आरआरटी) में थे और विनीता खुद कोविड ड्यूटी कर रही थीं। उस समय उनके बच्ची की उम्र महज 2.8 माह थी। कोविड की पहली लहर में मरीजों के घर दवा पहुंचाने की जिम्मेदारी थी। उनकी रिश्तेदार बच्ची को देखती थीं और पति-पत्नी समुदाय की सेवा करते थे। बच्ची का मोह दिन भर सताता था। ड्यूटी कर घर वापस लौटने के बाद भी तुरंत बच्चे के पास नहीं जा सकते थे। नहाने के बाद मास्क लगा कर बच्चे को छूते थे। दूसरे और तीसरे चरण में टीकाकरण की ड्यूटी करनी पड़ी जो और भी चुनौतीपूर्ण थी। सुवह 10 बजे से शाम चार बजे तक भीड़भाड़ का सामना कर जिम्मेदारी निभानी पड़ती थी। आठ हजार से अधिक लोगों को टीका लगाने वाली विनीता का कहना है कि अभी भी कोविड के प्रति सतर्क रहना होगा और मास्क, दो गज की दूरी एवं हाथों की स्वच्छता जैसे नियमों का पालन करना ही होगा । दीवान बाजार की स्टॉफ नर्स अर्चना मौर्या (35) ने तो फर्ज निभाने में एक अलग ही मिसाल पेश की । उनके घर में सिर्फ वह और दो बच्चे रहते हैं। पति बाहर रहते हैं । जब कोविड आया तो उनकी बड़ी बेटी की उम्र 10 साल और छोटे बेटे की उम्र महज दो साल थी । कोविड मरीजों की स्क्रिनिंग, सैंपलिंग, आरआरटी सपोर्ट और टीकाकरण जैसी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए अर्चना बच्चों को घर में बाहर से लॉक करके जाती थीं। बड़ी बेटी, छोटे बच्चे का ध्यान रखती थी। दोनों घर में टीवी देख कर समय काटते थे। कोविड के पीक समय में अर्चना घर में बच्चों से अलग सोती थीं। वह बताती हैं कि जब उन्हें खुद कोविड हो गया तो देवर को बुलाया और घर में आइसोलेट रहीं । कई बार देर शाम तक मीटिंग में भी रहना पड़ता था । बच्चों की सुरक्षा के लिए उन्होंने हमेशा घर में भी कोविड नियमों का पालन किया। झरना टोला और रामपुर की प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ. शालिनी के बड़े लड़के विवान को एलर्जिक अस्थमा की शिकायत थी और वह आक्सीजन सपोर्ट पर भी रह चुका था । घर का सबसे छोटा बच्चा युवान एक साल का था और सबसे बड़ी बच्ची सुहानी सात साल की । पहली लहर में डॉक्टर शालिनी ने खुद को आइसोलेट कर लिया और बच्चों की देखभाल सास साधना श्रीवास्तव और पति एसपी श्रीवास्तव करते रहे, लेकिन दूसरी लहर काफी चुनौतीपूर्ण रही। दूसरी लहर में सास और पति दोनों कोविड पॉजीटिव हो गये। ऐसे मुश्किल हालात में घर की मेड ने बच्चों की देखभाल की । डॉ. शालिनी बताती हैं कि वह कोविड के सभी लहरों के दौरान पूरी तरह से सैनेटाइज होकर ही परिवार के संपर्क में आईं । उनके स्टॉफ ने सबसे ज्यादा सहयोग किया । कोविड की तीसरी लहर में कोई खास दिक्कत नहीं हुई। अब बच्चे भी बिना मास्क बाहर नहीं जाते हैं और हाथों की स्वच्छता का विशेष ख्याल रखते हैं । सीएमओ डॉ. आशुतोष कुमार दूबे ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर उन समस्त मातृशक्ति को नमन है जिनकी वजह से कोरोना नियंत्रण की लड़ाई आसान हो सकी है। कोविड नियंत्रण से लेकर कोविड टीकाकरण तक में आधा आबादी ने निश्चित तौर पर उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। भारत की महिलाएं हैं महान, अपने हौसलों से भरती हैं उडान। किसी से न शिकायत, न कोई थकान।