17 सालों के बाद अब आग लगाना भी पड़ेगा महंगा



बिंदेश्वरी सिंह की खास खबर



खानपुर। अब तक मात्र एक रुपये में गरीब की कुटिया में पचासों बार रोशनी करने वाली और रसोई का चूल्हा जलाने वाली माचिस की डिबिया अब दुगने कीमत पर इतरा रही है। महंगाई की रंगदारी इस तीली पर लिपटे रोगन के लिए भारी पड़ रही है और करीब 14 साल बाद इसके दाम बढ गए हैं। देश भर में मात्र एक रुपये में मिलने वाली माचिस की डिबिया बुधवार से दो रुपये की हो गई। मंदिर में चाहे दिया जलाया जाना हो या दरगाह में अगरबत्ती जलानी हो, घर में चाहे गैस जलानी हो या फिर शुभ कामों के लिए अग्नि प्रज्ज्वलित कर पूजन करनी हो, सभी कार्यों में ज्यादातर माचिस का ही प्रयोग किया जाता है। कई दशकों से लोग मात्र एक रुपये में माचिस की डिब्बी अपने घर लाकर आग जलाने का कार्य करते थे। जानकारों का कहना है कि माचिस बनाने के लिए दस प्रकार के कच्चे माल की जरूरत होती है। कच्चे माल की कीमत में बढ़ोतरी होने से माचिस की लागत बढ़ गई है। एक किलोग्राम लाल फास्फोरस 425 रुपये से बढ़कर 810 रुपये, मोम 58 रुपये से 80 रुपये, लकड़ी बॉक्स बोर्ड 36 रुपये से 55 रुपये और अंदरूनी बॉक्स बोर्ड 32 रुपये से 58 रुपये तक पहुंच गया है। कागज, स्प्लिंट्स की कीमत, पोटेशियम क्लोरेट और सल्फर के दामों में भी दस फीसदी से अधिक की वृद्धि हो गई है और डीजल की बढ़ती कीमत ने भी इस सलाई पर अतिरिक्त बोझ डाला हैं।



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