148 सालों बाद बना ऐसा दुर्लभ संयोग, शनि जयंती व सूर्यग्रहण हुए एक साथ, वट के साथ पूजे गए पीपल वृक्ष





खानपुर। वट सावित्री का पर्व गुरूवार को बेहद धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान 148 सालों बाद ऐसा संयोग आया जब सूर्यग्रहण व शनि जयंती एक साथ आए हों। वट सावित्री पर्व के दिन ही शनि जयंती पड़ने से जहां महिलाओं ने शतायु वट वृक्ष की पूजा करके अखंड सुहाग की कामना की, वहीं पीपल के नीचे पूजा करके शनिदेव की आराधना की। गुरुवार को ज्येष्ठ कृष्णपक्ष अमावस्या पर महिलाएं विधिविधान पूर्वक वट सावित्री का पूजन किया। सुबह से ही सुहागिनें व्रत के लिए सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिष्ठान से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा में जुट गईं। इसी क्रम में क्षेत्र के बिछुड़ननाथ महादेव धाम, गौरी स्थित पर्णकुटी, नायकडीह स्थित कीनाराम आश्रम, औड़िहार स्थित बाराह रूप धाम, पटना स्थित रामानंद आश्रम, सिधौना स्थित सिद्धेश्वर महादेव आदि सहित बेलहरी, बहुरा, उचौरी, भुंअरपुर, अनौनी, खानपुर आदि गांवों में वटवृक्षों के नीचे बैठकर व्रती महिलाएं पति की आयु लंबी और संतान सुख की मंगल कामना के लिए कथा श्रवण करती रहीं। नदियों, जलाशयों, देवालयों आदि के पास महिलाओं ने अपने व्रत को पूरा किया। इस मौके पर महिलाओं ने शतायु माने जाने वाले पीपल व बरगद के पौधे रोपकर स्वजनों के शतायु होने का वरदान मांगा। व्रती महिलाओं ने वटवृक्ष के नीचे बैठकर पूजा अर्चना करते हुए पंडितों द्वारा वट सावित्री की कथा सुनी और पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए अखण्ड सुहाग का वर भगवान से मांगा। इसके अलावा जहां यमदेव को प्रसन्न करने के लिए उनके वाहन भैंसे को गुड़ व चना खिलाया, वहीं शनि जयंती होने से शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए उनके वाहन कौए को खीर व मिठाई खिलाई गई। गौरतलब है कि गुरुवार को शनि जयंती के साथ पूर्ण सूर्यग्रहण भी रहा। हालांकि भारत में सूर्यग्रहण न दिखने से सूतक नहीं लगा और लोग परहेज की बजाय पूजापाठ में जुटे रहे। ज्योतिषियों के अनुसार शनि जयंती और सूर्यग्रहण का यह दुर्लभ संयोग है और करीब 148 वर्षों के बाद बना है।



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