गाजीपुर : बारिश व बाढ़ में बहकर गंगा में आए कीटनाशकों का मछली पर पड़ता है बेहद खतरनाक प्रभाव, शोध में सामने आई भयावह तस्वीर





गाजीपुर। जिले के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में पूर्व शोध प्रबन्ध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें जन्तु विज्ञान विषय के शोधार्थी विजय शंकर गिरी ने ‘गाज़ीपुर जिले में गंगा नदी में कतला मछली की शारीरिक गतिविधियों पर कीटनाशकों का प्रभाव’ विषयक शोध प्रबन्ध व उसकी विषय वस्तु प्रस्तुत की। बताया कि गंगा नदी में औद्योगिक क्षेत्रों और कृषि क्षेत्रों में प्रयोग होने वाले कीटनाशक पदार्थ बारिश व बाढ़ के जरिए पहुंच रहे हैं। जिससे जलीय परतंत्र दुष्प्रभावित हो रहा है। कहा कि गंगा के जल का विभिन्न मानकों पर परीक्षण करके कतला मछली (भांकुर) को गंगा नदी से एकत्रित करके फेनिट्रोथियन, कार्बोफ्यूरॉन (फुरडॉन), बीएचसी (बेंजीन हेक्साक्लोराइड) या लिंडेन जैके कीटनाशक को अलग-अलग मात्राओं में रखकर मछली के अंदर अनेक दुष्प्रभावों का अध्ययन किया गया। जिससे ये निष्कर्ष निकला कि कीटनाशकों का मछलियों की शारीरिक क्रियाओं पर स्थायी और अस्थायी प्रभाव पड़ता है। ये उनकी जीवन क्षमता, वृद्धि और आबादी को नुकसान पहुंचाता है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। घातक रसायनों के संपर्क में आने पर मछलियों के विभिन्न शारीरिक तंत्र प्रभावित होते हैं और ये मछलियों के तंत्रिका तंत्र को बाधित कर देते हैं, जिससे असामान्य व्यवहार, मांसपेशियों में झटके और गति में कमी हो जाती है। कीटनाशक जल में घुले होने पर ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी हो जाती है। इससे मछलियों के गलफड़े प्रभावित होते हैं, और उन्हें श्वसन में कठिनाई होती है। ऑक्सीजन की कमी से ऊर्जा उत्पादन में कमी हो जाती है, जिससे अंगों में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है और शरीर के अंग ठीक से कार्य नहीं कर पाते। उनके प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाते हैं, जिससे वे संक्रमण और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। इस मौके पर प्राचार्य प्रो. राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, प्रो. जी. सिंह, मुख्य नियंता प्रो. एसडी सिंह परिहार, शोध निदेशक डॉ इन्दीवर रत्न पाठक, विभागाध्यक्ष डॉ. रागिनी अहिरवार, प्रो. अरुण कुमार यादव, डॉ. रामदुलारे, डॉ. कृष्ण कुमार पटेल, डॉ. रविशेखर सिंह, डॉ. अमरजीत सिंह, डॉ. कमलेश, डॉ शिवशंकर यादव, डॉ धर्मेंद्र आदि रहे।



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