माता-पिता के जज्बे और संघर्ष से कैंसर चैंपियन बन गयी 30 माह की मासूम दिव्या, चिकित्सक ने दिखाई थी राह





गोरखपुर। बच्चों में कैंसर के लक्षण दिखते ही चिकित्सक से सही राह मिल जाए और अभिभावक दृढ़ निश्चय कर लें तो बच्चा कैंसर से लड़ाई जीत सकता है। इसकी मिसाल बन चुकी हैं पादरी बाजार क्षेत्र की रहने वाली आठ वर्षीय मासूम दिव्या (काल्पनिक नाम)। दिव्या को महज 23 माह की नन्हीं सी उम्र में ही ब्लड कैंसर हो गया था। चिकित्सक ने उनके मां बाप को सही राह दिखाई। दोनों ने बच्ची के साथ संघर्ष किया और सात माह के इलाज के बाद दिव्या कैंसर चैंपियन बन गयी। उनके इस संघर्ष में स्वयंसेवी संस्था कैनकिड्स किड्सकैन ने कदम कदम पर आर्थिक और मानसिक संबल दिया। दिव्या के पिता बताते हैं कि वर्ष 2016 में जब वो 23 महीने की थी तो बुखार आता था और दवा करवाने पर ठीक हो जाता था। बच्ची को कई चिकित्सकों को दिखाया लेकिन दिक्कत बनी रही। एक निजी चिकित्सक ने जांच के बाद ब्लड कैंसर की पुष्टि की, लेकिन परिवार को विश्वास नहीं हुआ। दिव्या को बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ केपी कुशवाहा को दिखाया गया। उन्होंने प्रदेश के बाहर से जांच कराई। दिव्या के पिता बताते हैं कि जिस दिन कैंसर की पुष्टि हुई उस दिन बच्ची का दूसरा जन्मदिन था। पूरा परिवार गम में डूब गया। कोई राह नहीं सूझ रही थी। डॉ कुशवाहा की सलाह पर दिव्या के माता पिता उसे एम्स नई दिल्ली लेकर गये। पिता बताते हैं कि एम्स नई दिल्ली में सबसे बड़ी दिक्कत बेड की थी। वहां बेड खाली नहीं था। सात दिनों तक बच्ची को रोजाना इमर्जेंसी में भर्ती करते और जब बुखार छोड़ देता तो वहां से बच्ची को डिस्चार्ज कर दिया जाता। सात दिन बाद उन्हें बताया गया कि अगर वह छह यूनिट ब्लड का इंतजाम कर लेंगे तो उनकी बच्ची का इलाज कर दिया जाएगा। सात दिनों के दौरान उनका परिचय एक कैंसर पीड़ित युवक से हो गया था। उसने भरोसा दिया कि ब्लड का इंतजाम हो जाएगा। उस युवक ने सोशल मीडिया पर बात को प्रसारित किया और नई दिल्ली में दर्जनों लोग खून देने के लिए आगे आ गये। बच्ची को भर्ती कर इलाज शुरू किया गया और दूसरे दिन ही कैनकिड्स किड्सकैन संस्था की प्रतिनिधि सीमा ने उन लोगों से मुलाकात की। सीमा उन्हें हेल्प डेस्क पर ले गयीं और पूरी केस हिस्ट्री ली। पिता की कोई आय नहीं थी और न ही मां की कोई आमदनी। करीब डेढ़ लाख का खर्च सामने खड़ा था। संस्था की प्रतिनिधि ने बताया कि उन्हें हर प्रकार का आर्थिक सहयोग मिलेगा। संस्था की तरफ से प्लेटलेट किट्स आदि लाखों रुपये की दवाओं में मदद की गयी। दिव्या की मां बताती हैं कि जब छोटी सी बच्ची की कीमोथैरेपी शुरू हुई तो सब्र करना मुश्किल हो रहा था। वह लगातार कमजोर हो रही थी। ऐसे समय में पोषक खाद्य पदार्थों से उसे सपोर्ट किया गया। धीरे-धीरे सात महीने बीत गये और बच्ची कैंसर से मुक्त हो गयी। उसके बाद उसे एम्स में कई बार बुला कर जांच की गयी। सबकुछ ठीकठाक है। कोविड काल में ईमेल के जरिये बच्ची की रिपोर्ट देखी जाती रही। बच्चों के कैंसर के इलाज में समय का काफी महत्व है । अगर समय रहते जांच व इलाज हो जाए तो बच्चे ठीक हो सकते हैं। किड्सकैन कैनकिड्स संस्था की राज्य कार्यक्रम समन्वयक डॉ योगिता भाटिया बताती हैं कि उत्तर प्रदेश में 0 से 19 साल के बच्चों में बचपन के कैंसर के 14 हजार 700 मामले हैं। इनमें से लगभग 4050 बच्चे ही इलाज के लिए अस्पताल पहुंच सके। 72 फीसदी बच्चे हेल्थ सिस्टम तक एक्सेस नहीं कर पा रहे हैं। गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज, एम्स गोरखपुर और हनुमान प्रसाद पोद्दार कैंसर अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले कैंसर पीड़ित बच्चों को ट्रैक कर मदद कराई जा रही है। पूर्वांचल के अगर किसी भी परिवार में बच्चा कैंसर से पीड़ित है तो मदद के लिए अभिभावक, संस्था के हेल्पलाइन नंबर 9811284806 पर संपर्क कर सकते हैं।



अन्य समाचार
फेसबुक पेज
<< शताब्दी न्यूज का असर : बीईओ ने लिया संज्ञान, आनन फानन में हुई रसोईयों की नियुक्ति, 5 दिन बाद भोजन पाकर खिले मासूमों के चेहरे
4 माह पूर्व तूफान में टूटे पोल, आकाशीय बिजली से जला था ट्रांसफॉर्मर, 4 माह से स्कूल समेत पूरी बस्ती है अंधेरे में >>