जरा सी चूक और सामान्य से एमडीआर की श्रेणी में आ जाते हैं टीबी के मरीज, बचानी है जान तो इन बातों का रखें ध्यान





गोरखपुर। टीबी यानि क्षय रोग का सही समय पर और सही दिशा में इलाज न होने से एक सामान्य टीबी का मरीज मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) का मरीज बन जाता है। एमडीआर मरीजों पर टीबी की सामान्य दवाएं काम नहीं करती हैं। यही वजह है कि सरकारी अस्पताल पहुंचने वाले प्रत्येक टीबी मरीज की सीबीनॉट या ट्रूनेट जांच अवश्य करवाई जाती है। इस जांच से स्पष्ट हो जाता है कि मरीज सामान्य है या एमडीआर। अप्रशिक्षित चिकित्सक के चक्कर में भी पड़कर सामान्य टीबी मरीज एमडीआर हो जाते हैं। यह कहना है जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ रामेश्वर मिश्र का। उन्होंने जनसामान्य से अपील की है कि अगर लगातार दो हफ्ते से खांसी आए, बलगम में खून आए, रात में बुखार के साथ पसीना आए, तेजी से वजन घट रहा हो औरभूख न लगे तो नजदीकी डीएमसी या टीयू पर टीबी जांच निःशुल्क करवाएं। डॉ. मिश्र ने बताया कि जिले में 49 डेजिगनेटेड माइक्रोस्कोपी सेंटर (डीएमसी) हैं, जहां माइक्रोस्कोपिक जांच की मदद से टीबी की पुष्टि हो जाती है। इनके अलावा कुल 24 टीबी यूनिट (टीयू) हैं जिनमें से कुछ स्थानों पर माइक्रोस्कोपिक जांच के अलावा ट्रूनेट जांच की भी सुविधा उपलब्ध है। जिला अस्पताल, जिला क्षय रोग केंद्र, सहजनवां, कैंपियरगंज, खोराबार, उरूवा, भटहट, पिपराईच, बड़हलगंज और एम्स में ट्रूनेट जांच की सुविधा उपलब्ध है, जिससे एमडीआर मरीजों का पता लगाया जाता है। इनके अलावा जिला क्षय रोग केंद्र, बीआरडी मेडिकल कालेज और बड़हलगंज में सीबीनॉट मशीन से भी जांच की सुविधा उपलब्ध है। सरकारी अस्पतालों में जो भी टीबी मरीज चिन्हित हो रहे हैं, उनकी अनिवार्य तौर पर सीबीनॉट व ट्रूनेट जांच का दिशा-निर्देश है। डॉ मिश्र ने बताया कि जब टीबी मरीज जांच नहीं करवाते हैं और अप्रशिक्षित चिकित्सक के चक्कर में पड़ते हैं या फिर अपने मन से लाक्षणिक दवाएं लेते हैं तो उनके एमडीआर होने का खतरा बढ़ जाता है। इलाज के दौरान बिना कोर्स पूरा हुए दवा बंद कर देना, अनियमित तौर पर दवाएं लेना, बार-बार दवा बदलना और नियमित तौर पर आवश्यक जांच न करवाना भी एक सामान्य टीबी मरीज को एमडीआर बना देता है। जिले में इस समय करीब 250 एमडीआर टीबी रोगी हैं। एमडीआर मरीजों का इलाज जटिल हो जाता है और उनकी दवा में एडवर्स इफेक्ट भी ज्यादा देखने को मिलता है। मृत्यु दर भी इन मरीजों में ज्यादा देखी गयी है। सहरूग्णता जैसे एचआईवी व मधुमेह वाले एमडीआर मरीज ज्यादा खतरे में होते हैं। ऐसे में आवश्यक है कि लक्षण दिखते ही जांच कराएं और चिकित्सक के मना करने पर ही दवा बंद करें।



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