विरासत वृक्षों को सहेजने में फेल हो रहा विभाग, उदासीनता के चलते जिले के कई शतायु वृक्ष हुए कागज से लापता

बिंदेश्वरी सिंह की खास खबर

खानपुर। विरासत वृक्षों को सहजने की छिड़ी मुहिम विभागीय उदासीनता से कारगर नहीं हो पायी। कई सारे चयनित शतायु वृक्षों को वन विभाग द्वारा भेजे गए विरासत वृक्षों के ब्योरे को अधिसूचित तो किया गया लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों और विभागीय उदासीनता से उन्हें सरकारी संग्रह में जगह नहीं मिल पाई। पिछले वर्ष जनवरी में प्रदेश सरकार की ओर से सौ साल से अधिक उम्र वाले पेड़ों को विरासत वृक्ष घोषित किये जाने के आदेश पर प्रभागीय वनाधिकारियों ने जिले में दर्जनों वृद्ध पेड़ों को चिन्हित कर इनकी सूची तैयार की थी। इन्हें प्रस्ताव बनाकर जैव विविधिता बोर्ड को भेज दिया गया, ताकि प्रदेश में ईको टूरिज्म को पंख लग सके। अधिसूचित किए जा चुके सभी छह वृक्षों की जिओ टैगिंग कर विरासत वृक्षों के नोटिफेकेशन गूगल मैप पर आसानी से देखने का प्रावधान बनाया गया था। लेकिन आज एक भी विरासत वृक्ष सरकारी संग्रह में नहीं है। पीपल और बरगद सहित कई अन्य ऐतिहासिक और पौराणिक एक सदी से पुराने पेड़ों को विरासत वृक्षों के रूप में चयनित किया गया था। वन विभाग ने पिछले साल जनवरी माह में सूची जैव विविधता बोर्ड लखनऊ भेजी। वन विभाग के प्रस्ताव पर बोर्ड ने मुहर लगा दी। फिर इन वृक्षों पर उनका इतिहास दर्शाते हुए पट्टिकाएं लगाने की तैयारी थी। पट्टिकाएं तो लगाई जानी तय हैं, लेकिन सूचित किए गए विरासत वृक्षों को उत्तर प्रदेश की विरासत वृक्ष किताब में शामिल नहीं किया गया। ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग ने ठीक से चिन्हीकरण ही नहीं किया, अन्यथा जिले में दर्जनों पेड़ हैं जिनकी उम्र सौ से अधिक है। विभाग फिर से इन पेड़ों की गणना करे तो इनकी संख्या बढ़ सकती है। धार्मिक स्थलों पर स्थित इन पेड़ों को लगातार धार, पानी चढ़ाये जाने और मान्यता के चलते न काटे जाने पर इनकी उम्र बढ़ जाती है। जिनके संरक्षण की बहुत अधिक आवश्यकता है।