सही राह मिली तो कुष्ठ के साथ जीने लगे सम्मानजनक जीवन, छूने या हाथ मिलाने से नहीं फैलता है कुष्ठ





गोरखपुर। भटहट ब्लॉक के एक गांव में रहने वाले 26 वर्षीय श्रीनिवास (बदला हुआ नाम) लोगों तक यह संदेश पहुंचाने में जुटे हैं कि छूने या हाथ मिलाने से कुष्ठ रोग नहीं फैलता। 30 जनवरी से 13 फरवरी तक चलने वाले स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान के मौके पर उनका कहना है कि सही राह मिलने से उन्हें न केवल निःशुल्क इलाज मिला, बल्कि अब वह कुष्ठ के साथ सम्मानजनक जीवन भी व्यतीत कर रहे हैं। श्रीनिवास जब 11वीं कक्षा में पढ़ते थे तभी पैर के तलवों में कुछ चुभने जैसा और हथेली में गुदगुदी जैसा अनुभव होता था। वह बताते हैं कि वह अस्पताल जाने की बजाय एक स्थानीय चिकित्सक से एलर्जी की दवा कराने लगे। इसे वह अपनी गलती मानते हैं। जब दवा से कोई फायदा नहीं हुआ तो वह बीआरडी मेडिकल कालेज गये जहां जांच के बाद पता चला कि उन्हें कुष्ठ है। वहां से दवा शुरू हुई लेकिन उन्होंने दवाइयों के प्रति भी लापरवाही दिखायी। इस तरह उनकी बीमारी को समय से और नियमित इलाज नहीं मिला तो उनके तलवों में घाव बन गया और हाथों की उंगुलियां भी खराब होने लगीं। श्रीनिवास की पढ़ाई छूट गयी और उन पर युवावस्था में ही मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। श्रीनिवास को भटहट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से ही बताया गया कि वह जिला कुष्ठ रोग कार्यालय से संपर्क करें। यहीं से उन्हें सही दिशा मिल गयी और जिला कुष्ठ रोग कार्यालय की मदद से प्रयागराज में उनके उंगुलियों की सर्जरी कराई गई और जिला स्तरीय अधिकारियों की देखरेख में निःशुल्क इलाज हुआ। वह बताते हैं कि अंगूठा छोड़कर बाकी उंगुलियां ठीक हो चुकी हैं और वह पढ़ाई लिखाई कर पाते हैं। उन्हें 8000 रुपये भी मिले और दिव्यांगता प्रमाण पत्र दिलवाया गया। उन्हें प्रतिमाह 2500 रुपये की पेंशन भी मिल रही है। श्रीनिवास अनुभवों के आधार पर कहते हैं कि अगर समय से कुष्ठ की पहचान हो जाए और इलाज शुरू हो जाए तो बुरे हालात से बचा जा सकता है। वह बताते हैं कि उनके पड़ोसी गांव के एक जानने वाले को जब यही लक्षण दिखे तो श्रीनिवास की सलाह पर तुरंत जांच कराई गई और कुष्ठ की पुष्टि हुई। समय से इलाज होने से उनके जानने वाले का कुष्ठ दिव्यांगता का रूप नहीं ले सका। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ. गणेश प्रसाद यादव का कहना है कि अगर समय से कुष्ठ की पहचान व जांच हो जाए और नियम से औषधि का सेवन किया जाए तो विकृतियों से बचा जा सकता है। भेदभाव के डर से लोग बीमारी छिपाते हैं और यह दिव्यांगता का रूप ले लेती है। जिला कंसल्टेंट डॉ. भोला गुप्ता ने बताया कि समुदाय को यह समझना होगा कि कुष्ठ छूआछूत की बीमारी नहीं है। एक व्यक्ति से दूसरे में कुष्ठ का संक्रमण तभी हो सकता है जबकि लंबे समय से निकट संपर्क में दोनों लोग रहें। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी ने बताया कि अप्रैल 2021 से लेकर जनवरी 2022 तक कुल 157 कुष्ठ रोगी खोजे गये हैं और उनका इलाज चल रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में 148 नये रोगी खोजे गये थे और उक्त वर्ष में 201 मरीजों को कुष्ठ से मुक्ति मिली। स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान के तहत जिलाधिकारी विजय किरण आनंद जिला स्तर से सभी को शपथ दिलाएंगे वहीं ग्राम प्रधान प्रत्येक गांव में शपथ दिलाएंगे। डॉ. यादव ने बताया कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आशुतोष कुमार दूबे के दिशा-निर्देशन में अभियान के दौरान लोगों को कुष्ठ के लक्षण, कुष्ठ से बचाव के बारे में बताया जाएगा और नये कुष्ठ रोगियों को भी खोजा जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन इस कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग दे रहा है।



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