साइकिल की सवारी छोड़ राजनीति के कीचड़ में कमल खिलाएंगे सुभाष पासी, 2017 में भाजपा को दी थी सबसे बड़ी मात



आकाश बरनवाल



सैदपुर। बीते दिनों समाजसवादी पार्टी में भाजपा के बागी विधायक राकेश राठौर समेत बसपा के 6 विधायकों के शामिल होने से हुए डैमेज को भाजपा ने सपा को गाजीपुर में बड़ा झटका देकर कंट्रोल कर लिया है। भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी के कद्दावर व सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के अब तक करीबियों में शुमार सैदपुर के विधायक सुभाष पासी को अपने पाले में ला दिया है। सुबह से ही सोशल मीडिया पर सुभाष पासी के भाजपा में शामिल होने की खबरों को आखिरकार विराम तब मिला, जब दोपहर 1 बजे लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने खुद भाजपा की पट्टिका पहनकर उनका पार्टी में स्वागत किया और सदस्यता दिलाई। सदस्यता लेने के बाद विधायक ने कहा कि सपा में उन्हें वो सम्मान नहीं मिल रहा था, जिसके वो वास्तव में हकदार थे। एक तरह से उन्हें सपा घुटन होने लगी थी। वहीं विधायक के सपा छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद न सिर्फ सपा, बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं की भी प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी हैं। जहां सपा कार्यकर्ताओं को विधायक को खुलकर भलाबुरा कहने का मौका मिल गया है, वहीं भाजपा के कुछ कार्यकर्ता भी उनके भाजपा में आने से नाराज हैं। हालांकि भाजपा का बड़ा तबका खुलकर सुभाष पासी का भाजपा में स्वागत करता हुआ दिखा। विधायक के भाजपा में शामिल होने की खबर की पुष्टि के बाद सपा उत्तर प्रदेश ने अपने कार्यकर्ताओं में साख बचाने के लिए अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से सुबह 11ः26 मिनट पर ट्वीट कर उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की बात कहकर उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। इधर विधायक के कार्यालय से सुबह से ही सपा के झंडे, बैनर, होर्डिंग आदि हटाकर भाजपा का झंडा लगा दिया गया। सुभाष पासी के भाजपा में शामिल होने से सपा का गढ़ माने जाने वाले गाजीपुर में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। क्योंकि 2014 के लोकसभा, 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान जिस प्रचंड मोदी लहर में प्रदेश के अधिकांश बड़े से बड़े दिग्गज भी चुनाव हार गए थे, ऐसे वक्त में भी सुभाष पासी ने न सिर्फ सपा के टिकट से अपनी सीट बचाई थी, बल्कि प्रदेश में भाजपा को सबसे करारी मात भी दी थी। सबसे करारी हार इसलिए, क्योंकि सुभाष पासी के सामने कोई सामान्य प्रत्याशी नहीं, बल्कि खुद भाजपा के प्रदेश महामंत्री विद्यासागर सोनकर चुनाव लड़ रहे थे। ऐसे में भाजपा ने भी अपना पूरा एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। अमित शाह से लगायत कई राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के नेता की रैलियां भी हुईं। इसके बावजूद भाजपा के लिए सैदपुर की सीट को सुभाष पासी ने अजेय बना दिया था। यहां तक कि 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सपा को सैदपुर विधानसभा से काफी बढ़त मिली थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में अगर सैदपुर विधानसभा से भाजपा को बढ़त मिली होती तो मनोज सिन्हा की जीत तय थी। लेकिन सुभाष पासी नाम के रोड़े के चलते भाजपा का विजय रथ रूका हुआ था। लेकिन 2019 के बाद से ही जिस तरह से विधायक का रूझान भाजपा के प्रति होने लगा, उससे ये स्पष्ट होने लगा कि सुभाष पासी अब सपा में ज्यादा दिन के मेहमान नहीं रहेंगे और जल्द ही भाजपा का रूख बदल लेंगे। 2019 के चुनाव में मनोज सिन्हा की हार ने सुभाष पासी को भी व्यथित किया था। लेकिन सपा से विधायक होने के चलते वो इस बात को खुले मंच से तो नहीं कहते थे, लेकिन कहीं न कहीं बातचीत में उनका वो दर्द झलक जाता था। इसके अलावा 2019 के बाद से सुभाष पासी कभी भी भाजपा या बड़े नेताओं के खिलाफ मुखर होकर बयानबाजी नहीं करते थे। जिससे ये कयास लगाए जाने लगे थे कि शायद जल्द ही विधायक भाजपा का रूख कर लें। बहरहाल, लोकसभा चुनाव के दो सालों बाद भाजपा ज्वाइन करने को लेकर माना जा रहा है कि वो सही मौके का इंतजार कर रहे थे। वहीं उनके भाजपा में आने को लेकर पूरी पटकथा विधायक के करीबी दिनेश लाल यादव निरहुआ द्वारा लिखे जाने के भी कयास हैं। लोगों का कहना है कि विधायक भाजपा में आना तो चाहते थे, लेकिन उन्हें सही माध्यम नहीं मिल रहा था। ऐसे में वो माध्यक दिनेश लाल यादव बने और विधायक को सपा से बाहर कर भाजपा का रास्ता दिखाया। वहीं सपा से निकलकर भाजपा में जाने से सपा को नुकसान होता दिखाई दे रहा है। क्योंकि माना जाता है कि सुभाष पासी के पास खुद का बेस वोट करीब 15 से 19 हजार तक है। इसके अलावा भाजपा में आने पर भाजपा के वोट उन्हें मिलेंगे। वहीं सपा के पास अब प्रत्याशी के चयन की दुविधा होगी। सुभाष पासी के रहते सपा ने कभी सैदपुर से किसी अन्य व्यक्ति को मजबूत करने का प्रयास ही नहीं किया। जिसका खामियाजा उन्हें आगामी चुनाव में भी भुगतना पड़ सकता है। बहरहाल, अब देखना ये है कि सपा में रहकर दो बार विधानसभा पहुंचने वाले सुभाष पासी 2022 के चुनाव में कौन सा कमाल करते हैं। क्योंकि उन्होंने ऐसे समय में भाजपा की सदस्यता ली है, जब कई स्थानों पर भाजपा का जनता मुखर विरोध कर रही है। ऐसे में कहीं न कहीं 2022 की राह उनके लिए बेहद आसान नहीं होने वाली है। सपा में रहते हुए उनके लिए विधानसभा का रास्ता काफी आसान था, लेकिन अब स्थिति इसके उलट है।



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