क्रांतिकारियों की शहादत का इकलौता गवाह भदैला का ये पीपल पेड़, बगावत से बौखलाए अंग्रेजों ने सरेआम दर्जनों युवकों को दी थी फांसी



विंदेश्वरी सिंह की खास खबर



खानपुर। देश की जंग-ए-आजादी में सैदपुर क्षेत्र का अप्रतिम योगदान रहा है। यहां के कई नामी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ कई ऐसे भी शहीदी सेनानी हुए जिन्हें इतिहास के पन्नों में भले ही जगह न मिली हो पर क्षेत्रवासियों के दिलों में आज भी उनकी कुर्बानियां जीवित हैं। करीब 100 वर्ष पूर्व जब चौरी चौरा की घटना हुई, उसके बाद पूरे पूर्वांचल में उसकी तपिश महसूस की गई। भदैला गांव के करीब दर्जनभर युवाओं ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत फूंक दिया। जिससे बौखलाए अंग्रेज सैनिकों ने भदैला के बारह लोगों को पकड़कर उन्हीं के गांव में पोखरी के किनारे पीपल के पेड़ पर लटका दिया। शहीदों के कुर्बानी का गवाह खूनी पीपल का पेड़ आज भी उस मनहूस पोखरे के किनारे मौजूद है, जहां दिन के उजाले में गांव का कोई व्यक्ति जाना पसंद नही करता। सबसे महत्वपूर्व बात यह है कि उस समय तत्कालीन मजिस्ट्रेट भी उसी भदैला गांव के ही ब्राह्मण परिवार के थे। उन्हीं के आदेश पर जब गांव के दो ब्राह्मण समेत दो हरिजन, तीन यादव, दो कुशवाहा और तीन क्षत्रिय युवकों को फांसी पर लटकाया गया, तब पूरे गांव में हफ़्तों तक किसी के घर चूल्हा नही जलाया गया। सजा घोषित करने वाले ब्राह्मण परिवार के लोगों से पूरे गांव सहित क्षेत्र के लोग नफरत करने लगे और उनके साथ उठना-बैठना, दाना-पानी सब बंद कर दिया। कई वर्षों बाद उस मजिस्ट्रेट का परिवार गांव छोड़कर बाहर चला गया। आज भी गांव के लोग उनके परिवार के वंशजों का नाम तक नहीं लेते और उनके परिजनों के साथ कोई संबंध नहीं रखते है। सैदपुर ब्लॉक मुख्यालय से दस किलोमीटर पश्चिम में बसे इस भदैला गांव के उत्तरी किनारे पर अभिशप्त यह पीपल का पेड़ आज भी अपने भयावहता और खूनी एहसासों के साथ खड़ा है। गांव के बुजुर्ग आज भी उन घटनाओं को याद कर सिहर उठते है कि कैसे उन निर्दोष गांव वालों को अंग्रेज सिपाही घरों में से खींच-खींचकर फांसी के फंदे तक लेकर गये थे। शहीद क्रांतिकारियों में कई युवाओं की नई-नई शादी हुई थी तो कई अविवाहित ही शहीद होकर अपने वंश परंपरा को ही खत्म कर बैठे। ऐतिहासिक पीपल के पेड़ के पास ही मजिस्ट्रेट के बैठने का गवाह उनका कोर्ट रूम भी खंडहर के रूप में वहीं मौजूद है।



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