भीमापार : गाजीपुर का ऐसा गांव जहां पर्व के दिन नहीं बल्कि उसके अगले दिन मनाई जाती है जबरदस्त होली, काफी गंभीर है मान्यता



मनोज सिंह की खास खबर



भीमापार। कोई भी त्योहार अपनी तिथि पर ही मनाया जाता है, लेकिन भीमापार बाजार में होली का पर्व तय तिथि के एक दिन बाद मनाने की अति प्राचीन परम्परा है। किसी अनिष्ट की आशंका और अंधविश्वास के कारण ग्रामीण सदियों से चली आ रही परम्परा आज भी बदस्तूर निभाते चले आ रहे हैं। पूरे क्षेत्र में होलिका फाल्गुन पूर्णिमा को जलाई जाती है और अगले दिन रंग खेला जाता है। लेकिन जिले के सादात ब्लाक के भीमापार बाजार में होली चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के बजाय द्वितीया को मनाने की परंपरा है। कहा जाता है कि किसी संत या प्रतिष्ठित साहूकार के निधन के चलते होली अगले दिन मनाने की यह परंपरा शुरू हुई। इसे लेकर बाजार के कुछ बड़े-बुजुर्गों ने बताया कि बहुत पहले भीमापार बाजार में नर्तकियां रहती थीं। क्षेत्र के प्रतिष्ठित और जमीदारों के घर नर्तकियों के साथ भीमापार गांव के लोग भी होली खेलने होली के दिन चले जाते थे, जिसके कारण उस दिन भीमापार में होली नहीं हो पाती थी। ऐसे में लोग दूसरे दिन अपने गांव में आकर होली खेलते थे। तभी से यहां दूसरे दिन होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। कुछ लोग इस परंपरा के दूसरे कारण भी बताते हैं। गांव के कुछ लोगों ने कई बार इस प्रथा को बदलने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो सके। उनका कहना है कि जब भी किसी ने परंपरा को बदलने की कोशिश तो यहां पर अनिष्ट हो गया। जिसके चलते यहां के लोग दूसरे दिन खूब रंगों से सराबोर होकर पूरे उल्लास के साथ यह पर्व मनाने की अपने पूर्वजों की परंपरा का निर्वहन करते चले आ रहे हैं। रंग, अबीर, गुलाल से सराबोर भीमापार बाजार में उक्त दिन कोई वाहन भी नहीं चलता है। अगर भूल से कोई अनजान व्यक्ति बाजार में पहुंच गया तो उसे निश्चित तौर पर वहां के लोग रंगों से सराबोर कर देंगे और इतना हुड़दंग मचाते हैं कि बाजार में आवागमन बन्द कर पुलिस बल की तैनाती की जाती है।



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