रामचरित मानस विवाद पर संतों में पनप रहा आक्रोश, कहा - ‘तुलसी का मानस नहीं बल्कि अराजक लोगों की मंशा बदलने की है जरूरत’


खानपुर। तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर लगातार हो रहे नुक्ताचीनी से साधु संतों में घोर निराशा और आक्रोश पनप रहा है। क्षेत्र के गौरी गांव स्थित गोमती नदी किनारे पर्णकुटी के मानस भवन की दीवारों पर सम्पूर्ण रामचरितमानस की पंक्तियां लिखी और सचित्र उकेरी गई हैं। मानस भवन के सामने गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रतिमा स्थापित है। जहां प्रतिदिन मानस के सुंदरकांड का पाठ किया जाता है। साल भर में दो बार 1-1 महीने तक चलने वाले रामचरितमानस का संगीतमय गायन होता है। पर्णकुटी के महंत अरुणदास महाराज ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में रचित रामायण को जनप्रिय एवं जन सामान्य में पठनीय बनाने के लिए गोस्वामी जी ने उस बड़े महाकाव्य से प्रभु श्रीराम के चरित्र को हिंदी और अवधी भाषा के साथ मैथिली को मिलाकर रामचरितमानस की रचना की है। सैकड़ों वर्षों के बाद रामचरितमानस की पंक्तियों पर अंगुली उठाना और टिप्पणी करना धार्मिक विद्रोह के समान है। भारतीय जन मानस के साथ दुनियाभर में रामचरितमानस की चौपाइयां पढ़ी जाती है। कई देशों में रामलीला का सादर मंचन भी किया जाता है। अपने महापुरुषों एवं महाग्रंथों पर प्रश्न न उठाकर उसके सद्गुणों को आत्मसात करना चाहिए। प्रभु श्रीराम को अपने ही जन्मभूमि उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक अनर्गल प्रश्नों और अतार्किक व्यक्तव्यों का सामना करना पड़ता है। रामचरितमानस सर्व समाज को एक साथ समभाव से एक दूसरे का सहयोग करते हुए गुरु, गाय, गंगा व स्त्री रक्षा, सम्मान के साथ सत्य, धर्म, न्याय का पालन करने की सीख देती है। सनातन सहित किसी भी धार्मिक ग्रन्थ पर किसी प्रकार का टीका टिप्पणी करना सभ्य समाज को शोभा नही देता। भारतीय जन मानस को मानस की लेखनी के बजाय अपनी मानस को बदलने की जरूरत है।