रिसर्च : बिना अस्पताल में भर्ती हुए घर पर ठीक हो गये 57 प्रतिशत डेंगू के मरीज, डेंगू का प्रोटोकॉल न मानने पर अस्पताल गए लोग
गोरखपुर। स्वास्थ्य विभाग की ओर से डेंगू के हर पुष्ट मामले के सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है कि जिले में 57 प्रतिशत मरीज बिना किसी अस्पताल में भर्ती हुए डेंगू के इलाज से घर पर ठीक हो गए। जिला मलेरिया अधिकारी अंगद सिंह ने बताया कि टीम के सर्वेक्षण में मरीजों की केस हिस्ट्री लेने पर यह तथ्य सामने आया है कि अस्पताल जाने वाले ज्यादातर मरीज वही हैं जिन्होंने डेंगू के इलाज का प्रोटोकॉल नहीं माना है। इन लोगों ने लक्षण दिखने पर न तो समय से जांच कराई, न प्रशिक्षित चिकित्सक की दवा ली, न बेड रेस्ट किया और न ही खानपान में कोई सुधार किया। कुल 232 मरीजों की केस हिस्ट्री ली गयी। इसमें से 133 मरीज इलाज से घर बैठे ठीक हुए हैं। इलाहीबाग के रहने वाले ज्ञान प्रकाश का 11 वर्षीय पुत्र रणबीर राज एक नवम्बर को स्कूल गया था। स्कूल से उन्हें फोन आया कि बच्चे को बहुत ज्यादा फीवर है। बच्चे को घर लाने के बाद उन्होंने मोहल्ले के चिकित्सक को दो नवम्बर को दिखाया। चिकित्सक ने बुखार की दवाएं दीं। जब बच्चे को बुखार के साथ फिल्ली में दर्द की समस्या हुई तो ज्ञानप्रकाश ने चरगांवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर डेंगू जांच कराया। बच्चे का ब्लड एलाइजा कंफर्मेशन जांच के लिए जिला अस्पताल गया था। ज्ञानप्रकाश बताते हैं कि छह नवम्बर को जिला अस्पताल से फोन आया कि उनके बच्चे को डेंगू है। रिपोर्ट के साथ वह पुनः चिकित्सक से मिले। चिकित्सक ने बताया कि जो दवाएं चल रही हैं, वही चलेंगी लेकिन कुछ अतिरिक्त सतर्कता बरतनी है। बच्चे को बेडरेस्ट पर रखना है। घर में मच्छर से बचाव के सभी इंतजाम रखने है और खाने पीने में सिर्फ तरल खाद्य पदार्थ देना है। रणबीर के पिता ज्ञान प्रकाश ने बताया कि बच्चे को खाने में दाल का जूस, फलों के जूस, नारियल पानी व सिर्फ तरल पदार्थ दिये गये। यह ध्यान रखा गया कि बच्चा कहीं खेलने न जाए। धीरे-धीरे सेहत सुधरी और 10 नवम्बर तक उनके बच्चे की डेंगू रिपोर्ट निगेटिव हो गयी। अब वह स्कूल जा रहा है। एक निजी स्कूल में शारीरिक अभ्यास के शिक्षक समीर डेंगू प्रोटोकॉल न पालने करने की सजा झेल चुके हैं। वह बताते हैं कि उन्हें पांच सितम्बर 2022 को बुखार, सिरदर्द और बदन दर्द की समस्या हुई। उन्होंने पंद्रह दिन तक मेडिकल स्टोर से दवा खरीद कर खाई और शारीरिक गतिविधियां भी जारी रखीं। नतीजा यह हुआ कि उनकी हालत काफी खराब हो गयी। अस्पताल ले जाने पर जांच में पता चला कि प्लेटलेट 40 हजार तक पहुंच गया है और उन्हें डेंगू है। उनके एक परिचित चिकित्सक ने सलाह दी कि अगर दवा लेते हुए घर पर आराम करें और तरल भोजन का सेवन करें तो प्लेटलेट रिकवर हो जाएगा और तबीयत भी ठीक हो जाएगी। समीर बताते हैं कि उन्होंने साधारण बुखार की दवाओं का सेवन करते हुए आराम किया और धीरे-धीरे उनकी तबीयत सुधरने लगी। वह अपनी गलती स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि लक्षण दिखते ही डेंगू की तुरंत जांच व इलाज होना चाहिए। वह खतरे की जद से बाहर आ गये लेकिन जरूरी नहीं कि सभी के साथ ऐसा हो। दशहरे तक वह पूरी तरह स्वस्थ हो गये। सहायक मलेरिया अधिकारी सीपी मिश्रा बताते हैं कि वह टीम के साथ डेंगू के पुष्ट मरीजों के सर्वे के लिए गये तो अस्पताल में भर्ती होने वाले ज्यादातर मरीज ऐसे मिले जिन्होंने लक्षण आने के बाद दवा ली और फिर लक्षण जाते ही दवा बंद कर दी। उनकी शारीरिक गतिविधियां बंद नहीं हुईं, जिससे उनका मर्ज बढ़ता ही गया। अगर उन्होंने लक्षण आते ही चिकित्सक की सलाह ली होती तो यह स्थिति नहीं आती है।