ऐसी हरियाली जो पर्यावरण के लिए है घातक, पारिस्थितिक तंत्र को पहुंचाती है नुकसान



बिंदेश्वरी सिंह की खास खबर



खानपुर। गोमती नदी में इस समय जलकुंभी की भरमार ने उसे हरा-भरा कर दिया है। जलकुंभी नदी के अधिकांश हिस्सों को घेरकर अप्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत दे रही है। जनपद में नियार घाट से खरौना गांव के संगम तक कई घुमावदार मोड़ से गुजरने वाली गोमती नदी के एक बड़े हिस्से पर जलकुंभी का कब्जा हो गया है। मानसून की आहट से नदी में पानी बढ़ने के साथ ही जलकुंभी भी बढ़ने लगी है। जिससे नदी में जलीय जीवन भी खतरे में पड़ गया है। जलीय जीवन के अस्तित्व पर मंडराते खतरे के रूप में जलकुम्भी एक ऐसा खर पतवार है, जो जल में उत्पन्न होकर विभिन्न प्रजातियों के जीवन को संकट में डाल देता है। जलीय कुम्भी नदी के जल को कुपोषित करने के साथ साथ कई जलचरों की सांसें भी अवरुद्ध कर देती है। जिससे या तो जलीय जीवन समाप्त हो जाता है या पलायन कर जाता है। जलकुंभी एक फ्री-फ्लोटिंग जलीय मेक्रोफाइट है, जो जलीय जंतुओं सहित सिंचाई व्यवस्था, सुचारू जल प्रवाह के लिए भी बाधा खड़ी करता है। जल कुम्भी जलीय पौधों तक सूरज की रोशनी व ऊष्मा को नहीं पहुंचने देती, जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित हो जाती है और जलीय पौधे इसके अभाव में समाप्त हो जाते हैं। गोमती नदी में यह समस्या बहुतायत देखने को मिल रही है। असंशोधित सीवेज से नदी का जल बहुत अधिक प्रदूषित हुआ है, जिससे जलकुम्भी का प्रभाव और अधिक घातक हो गया है। गोमती नदी में जलकुम्भी अधिक तेजी से फैलने जलप्रवाह पर असर पड़ता है, साथ ही जलीय जीवन तथा आस पास की वनस्पतियों का जीवन भी संकट में पड़ जाता है।



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