125वीं जयंती पर याद किए गए महान क्रांतिकारी बिस्मिल, क्रांतिकारी के कवि व साहित्यकार रूप की हुई चर्चा
खानपुर। कुसहीं में महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल की 125वीं जन्म जयंती मनाई गई। कैलाशपति पांडेय ने कहा कि राम प्रसाद बिस्मिल को क्रांतिकारी रूप से तो सभी जानते हैं, लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि वह संवेदशील कवि, शायर, साहित्यकार व इतिहासकार भी थे। उन्होंने अपने लेखन और कविता संग्रह में बिस्मिल नाम के अलावा दो उपनाम राम और अज्ञात नाम का भी इस्तेमाल किया है। बताया कि पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने तीस साल के जीवन में कुल 11 पुस्तकें प्रकाशित की थी। अपने जीवन के अंतिम क्षण में फांसी के फंदे पर भी वो ‘सर फरोशी की तमन्ना’ जैसा गीत पूरे जोश और गौरव से गाकर मां भारती के गोद में सदा के लिए सो गए। रामजीत यादव ने कहा कि चौरीचौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन वापस लिए जाने से देश में फैली निराशा को देखकर रामप्रसाद को कांग्रेस के आजादी के अहिंसक प्रयासों से विश्वास ही उठ गया। इसके बाद बिस्मिल ने चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाले हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ मिलकर अंग्रेजों से लोहा लेना शुरू कर दिया। इस संघर्ष की लड़ाई में उन्हें हथियारों के लिए पैसों की कमी महसूस हुई तो अपनी पुस्तकों को बेचकर हथियार जुटाए थे।