आरआरटी की मदद से आसान हुई कोविड की लड़ाई, छुट्टी और घर-परिवार की परवाह न करते हुए सेवा दे रही टीम





गोरखपुर। जिले में बनाई गयी 42 रैपिड रिस्पांस टीम (आरआरटी) बिना कोई अवकाश लिए और घर-परिवार की परवाह किये बगैर कोविड मरीजों की सेवा में जुटी है। टीम के लोग रविवार को भी छुट्टी नहीं ले पाते। इनकी मदद से कोविड की लड़ाई आसान हुई है। ऐसे में कोविड मरीजों और उनके परिजनों को भी सक्रिय सहयोग करना चाहिए। आरआरटी से जुड़े लोगों का अनुभव है कि स्टिगमा और डिस्क्रिमनेशन (कलंक और भेदभाव) एक ऐसा कारक है, जिसके कारण ज्यादातर कोविड मरीज नहीं चाहते हैं कि उनके घर आरआरटी पहुंचे। मेडिकल रोड स्थित एक कॉलोनी में रहने वाले 11 वर्षीय शिवांश (बदला हुआ नाम) कोविड पॉजीटिव हैं। जब आरआरटी ने उनके घर का विजिट करने के लिए फोन करके लोकेशन मांगी तो बच्चे के पिता ने टीम को मना कर दिया। टीम के मोबिलाइज करने पर उन्होंने थोड़ी देर रुकने को कहा। कुछ ही समय बाद बच्चे के पिता खुद अस्पताल चल कर आए और आरआरटी से मिल कर मेडिसिन किट ले ली और कहा कि टीम के आने से उनके मोहल्ले में लोग भेदभाव का रवैया अपनाएंगे इसलिए टीम उनके यहां न आए। महानगर के राप्तीनगर स्थित एक कालोनी के 30 वर्षीय शनि (बदला हुआ नाम) से आरआरटी ने उनके आवास का सही लोकेशन जानने के लिए संपर्क किया ताकि विजिट किया जा सके, लेकिन शनि ने टीम को मना कर दिया और कहा कि उन्हें जो भी मदद चाहिए होगी वह खुद संपर्क कर लेंगे। टीम को आने की आवश्यकता नहीं है। आरआरटी चरगांवा के चिकित्सा अधिकारी डॉ. मनोज कुमार मिश्र का कहना है कि टीम को कोविड मरीजों की मदद करने में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन उच्चाधिकारियों के मार्गदर्शन के कारण शत प्रतिशत मदद हो रही है। वह बताते हैं कि कई बार आरआरटी का नाम सुनते ही मरीजों के परिजन मोबाइल ऑफ कर लेते हैं। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि उनके यहां इस नाम को कोई मरीज नहीं है। कुछ मरीजों के परिजन खुद अस्पताल चले आते हैं। काम चुनौतीपूर्ण है लेकिन मोटिवेशन से लोगों की मदद का प्रयास हो रहा है। आरआरटी के काम में पारदर्शिता लाने के लिए एप सिस्टम लागू है। आरआरटी को न केवल मरीज के घर विजिट करनी है, बल्कि उससे जुड़े कई प्रकार के विवरण एप में दर्ज करने होते हैं। मरीज के घर में कितने कमरे हैं, कुल कितने सदस्य हैं, कितने वाशरूम हैं, केयर टेकर कौन है, मरीज को बीपी या शुगर की समस्या तो नहीं है, आक्सीजन लेवल क्या है, पल्स रेट क्या है, फीवर की स्थिति क्या है, यह सारे विवरण आरआरटी को लेने होते हैं और इन्हें एप पर दर्ज करना होता है। अगर किसी मरीज की तबीयत ज्यादा खराब है तो लक्षणों के आधार पर उसे संदर्भित भी करना होता है। सीएमओ डॉ. आशुतोष कुमार दूबे ने कहा कि कोविड मरीजों और परिवारों के साथ भेदभाव की भावना से ऊपर उठना होगा। अगर मास्क, दो गज की दूरी और हाथों की स्वच्छता के नियम का पालन करते हैं तो आस-पास के मरीज से कोई संक्रमण नहीं होगा। भेदभाव की इसी भावना के कारण मरीज स्वास्थ्यकर्मियों की खुलेआम मदद लेने से बचते हैं। कोविड मरीजों और उनके परिजनों को भी आरआरटी, निगरानी समिति और आशा कार्यकर्ताओं के प्रति अपना व्यवहार बदलना चाहिए और अगर यह लोग उनकी मदद के लिए जा रहे हैं तो उनका स्वागत करना चाहिए।



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