जिस घटना से अपराध जगत में घुसे थे त्रिभुवन सिंह, उस घटना में 39 साल बाद इकलौते हत्यारे को हुई उम्रकैद, 1984 के बाद से यूपी के अपराधजगत में आ गया था भूचाल, जानें एक-एक बारीकी
यही है वो जमीन का टुकड़ा, जिसके लिए शुरू हुआ था अनगिनत हत्याओं का सिलसिला
सैदपुर। सैदपुर के बहुचर्चित 39 साल पुराने रामपति सिंह हत्याकांड में आखिरकार जिले की कोर्ट में फैसला सुना दिया। जिसमें हत्या में 3 नामजद आरोपियों में जिंदा बचे इकलौते आरोपी हरिहर सिंह को हत्यारा करार देते हुए कोर्ट ने उम्रकैद की सजा व 1 लाख रूपए जुर्माने की सजा दी। जुर्माना अदा न करने की स्थिति में एक साल अतिरिक्त सश्रम कारावास की सजा पूरी करनी पड़ेगी। इसी घटना से जुड़ने के बाद दोनों पक्षों से करीब दो दर्जन से अधिक लोगों की हत्याएं तक हो चुकी हैं। आज स्थिति ये है कि जिस जमीन के लिए इतनी बड़ी जंग शुरू हुई, वो जमीन अपने वास्तविक मालिकों के पास ही है। यही वो घटना थी, जिसके बाद मृतक रामपति सिंह के सबसे छोटे पुत्र त्रिभुवन सिंह की अपराध जगत में एंट्री हुई थी। 80 के दशक में लक्षीपुर मोड़ स्थित एक ढाई बीघे जमीन के लिए मृतक रामपति सिंह व हरिहर सिंह के बीच विवाद शुरू हुआ था। रामपति सिंह के इचवल निवासी दामाद अंबिका सिंह सेना में सुबेदार थे। उनके नाम पर उन्होंने एक जमीन को बैनामा कर दिया और एक अन्य जमीन को वसीयत कर दिया। इस बीच बरहट निवासी हरिहर सिंह व उनके लोगों ने रामपति सिंह के जमीन को जोतना शुरू कर दिया। यहीं से पूरा विवाद शुरू हुआ और पुलिसकर्मियों के घर व सरकारी नौकरी करने वाले लोगों के बीच ऐसी जंग हुई, जिसने पूर्वांचल में अपराध का नया अध्याय शुरू कर दिया। उस जमीन को हरिहर सिंह के लोगों द्वारा जोतने के बाद रामपति सिंह ने कहा कि वो अपनी जमीन पर अब खेती करेंगे। जिसके बाद 1984 में लक्षीपुर मोड़ के उसी ढाई बीघे जमीन वो अपना ट्रैक्टर लेकर उसे जोतने पहुंचे। इस बीच वहां मकनू सिंह, साधु सिंह व हरिहर सिंह पहुंच गए। जहां पिता की हत्या के बाद सुरक्षा के लिए मिले अपने लाइसेंसी असलहे को हरिहर सिंह ने निहत्थे रामपति सिंह पर तान दिया। ये देख वो भागने लगे और बाजार तक पहुंचे ही थे कि मंदिर के पास हरिहर सिंह ने गोली मारकर दिनदहाड़े रामपति की हत्या कर दी। इसके बाद से जंग शुरू हो गया। काफी दिनों तक हत्यारों ने फरारी काटी। इस बीच मकनू सिंह पर एक बार फायरिंग हुई तो गोली उनके जांघ को फाड़ते हुए निकल गई। हालांकि उसमें वो बच गए लेकिन बाद में सिंचाई कालोनी में उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद साधु सिंह की हत्या जिला जेल में दिनदहाड़े कर दी गई। घटना में बताया जाता है कि बृजेश सिंह पुलिसकर्मी की वर्दी पहनकर वहां पहुंचे थे। उनका भी नाम इस मामले में सामने आया था। उसी दिन एक घंटे के अंदर साधु के अलावा अपने घर पर मौजूद नेत्रहीन दामोदर सिंह व खेदन सिंह की भी हत्या हो गई थी। साथ ही दामोदर के घर हुई फायरिंग में वहां मौजूद उनकी बेटी व पत्नी के हाथों में गोली लगी थी, जिसमें वो घायल हुई थीं। इस बीच भितरी के सियावां इंटर कॉलेज के सामने हुई फायरिंग में रामपति सिंह के पक्ष से एक मौत हुई तो दूसरी तरफ से डहन निवासी एक पुलिसकर्मी की मौत हुई थी। मृतक रामपति सिंह के 6 पुत्र थे, जिसमें से 3 की गैंगवार में मौत हो चुकी है तो तीन अभी जिंदा हैं। जिनमें से सबसे छोटे पुत्र त्रिभुवन सिंह हैं। सबसे बड़े पुत्र राजेंद्र सिंह यूपी पुलिस में हेड कांस्टेबल थे और उनकी पुलिस लाइन में हत्या हुई थी तो दूसरे नंबर पर रामनगीना सिंह हैं, जो वर्तमान में सैदपुर में रहते हैं। तीसरे नंबर पर वीरेंद्र सिंह जिला पुलिस में हवलदार थे व चौथे नंबर के रामविलास सिंह डॉक्टर थे। उन दोनों की हत्या मुड़ियार गांव से बाइक से जाने के दौरान एक साथ की गई थी। पांचवें नंबर पर विजय शंकर सिंह हैं, जो वर्तमान में अपने मुड़ियार स्थित पुश्तैनी घर पर परिवार के साथ रहते हैं। सबसे छोटे पुत्र त्रिभुवन सिंह हैं। रामपति सिंह के पुत्र रामनगीना व विजयशंकर सिंह ने 39 साल बाद आए इस बहुप्रतीक्षित निर्णय के बारे में कहा कि हमें बेहद खुशी है। हमें न्यायपालिका पर पूर्ण भरोसा था कि हमारे साथ न्याय होगा और आज न्याय हुआ। कहा कि देरी हुई लेकिन फिर भी हम खुश हैं। रामनगीना सिंह ने ये भी बताया कि विपक्षियों के साथ बाकी सारे विवाद में सुलह हो गया था लेकिन इस मामले की फाइल को मकनू सिंह द्वारा ही बलिया के कद्दावर नेता की मदद से वहां के न्यायालय में स्थानांतरित करा दिया गया था और हमें इसकी जानकारी नहीं थी। जिसके चलते इस मामले में न्यायालय में सुलह नहीं हो सका। कहा कि हम लोग फाइल खोज रहे थे लेकिन नहीं मिली। वहीं इस फैसले पर खुशी जताते हुए पूरे घटनाक्रम के बारे में छोटे भाई विजयशंकर सिंह व उनकी पत्नी बेहद दुःख जताया। कहा कि इस घटना के बाद से ही भरा पूरा परिवार उजड़ गया। जिन जमीन के टुकड़े के लिए विवाद हुआ, वो आज अपने-अपने वास्तविक मालिकों के पास ही है। विवादित जमीन, जिसे जोतने के लिए पिता रामपति गए थे, वो सुलह के बाद हमारे पास ही है। लेकिन पूरे घटना में हमारा सर्विस करने वाला पूरा परिवार बिखर गया। बता दें कि मकनू सिंह भी सिंचाई कर्मी थी। एक प्रकार से देखा जाए तो जमीन के लिए बेहद सामान्य से रहे कई परिवार के कई सदस्य उत्तर प्रदेश के टॉप मोस्ट माफियाओं की श्रेणी में शामिल हो गए।