सही देखभाल से सामान्य जीवन जी सकते हैं दिव्यांग कुष्ठ रोगी, 25 दिव्यांग कुष्ठ रोगियों को बताए गए तरीके





गोरखपुर। दिव्यांग कुष्ठ रोगियों को अपनी जीवनशैली में कुछ विशेष सावधानियां बरतनी होती हैं। अगर दिव्यांग कुष्ठ रोगी रोजाना अपने दिव्यांग अंग की सही देखभाल करें तो सामान्य जीवन जी सकते हैं। उक्त बातें जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ गणेश प्रसाद यादव ने कहीं। उन्होंने चरगांवा ब्लॉक के 25 दिव्यांग कुष्ठ रोगियों को टब वितरित किया और कुष्ठ में दिव्यांगता के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में भी विस्तार से बताया। कार्यक्रम का आयोजन स्वयंसेवी संस्था नीदरलैंड रिलीफ इंडिया (एनएलआर) के सहयोग से किया गया। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी ने बताया कि दिये गये टब में सामान्य पानी भर देना है। पानी गरम या ठंडा नहीं होना चाहिए। पानी में कुष्ठ से दिव्यांग हुए अंग को डाल कर भिगो देना है। इसके बाद प्रभावित अंग पर साफ कपड़े से थपकी देकर उसे सुखा देना है। सूखे हुए अंग पर नारियल का तेल या सरसों का तेल लगाना है। यह क्रिया प्रतिदिन करने से दिव्यांगता से प्रभावित अंग कोमल बना रहता है। दिव्यांग कुष्ठ रोगी के दिव्यांग अंग में संवेदना नहीं होती है, इसलिए सुबह व शाम उसे अपने प्रभावित अंग की खुद जांच करते रहनी चाहिए। उसे देखना चाहिए कि कहीं अंग पर चोट तो नहीं लगा है या फिर कोई चीज धंसी तो नहीं है। अगर ऐसी कोई दिक्कत हो तो चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए। चरगांवा के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ धनंजय कुशवाहा, जिला कुष्ठ रोग परामर्शदाता डॉ भोला गुप्ता, स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी मनोज कुमार और एनएलआर संस्था के प्रतिनिधि डॉ विपिन सिंह ने भी दिव्यांग कुष्ठ रोगियों को सरकारी प्रावधान के तहत उपलब्ध सुविधाओं के बारे में जानकारी दी। डॉ यादव ने बताया कि कुष्ठ से दिव्यांग हुए रोगियों को तीन हजार रुपये प्रति माह पेंशन देने का प्रावधान है। कुष्ठ के कारण टेढ़ी हो चुकी अंगुलियों को ठीक करने के लिए प्रयागराज भेज कर सर्जरी कराई जाती है। सर्जरी के दौरान होने वाले श्रम ह््रास के एवज में रोगी को 8000 रुपये उसके खाते में प्रदान किये जाते हैं। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी ने बताया कि शीघ्र पहचान और इलाज से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है। इलाज में ज्यादा देरी होने पर यह दिव्यांगता का रूप ले लेता है। कुष्ठ शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकता है, इसलिए कुष्ठ की स्क्रीनिंग पूरी गहनता से की जाती है। अगर शरीर पर कहीं भी सुन्नपन, दाग या धब्बा हो जिसका रंग चमड़ी के रंग से हल्का हो तो कुष्ठ की जांच अवश्य करानी चाहिए। अगर दाग धब्बों की संख्या पांच या पांच से कम है व नसें प्रभावित नहीं होती हैं तो रोगी को पासी बेसिलाई (पीबी) कुष्ठ रोगी कहते हैं, जबकि पांच से अधिक दाग धब्बों के साथ नसें प्रभावित होने पर रोगी मल्टी बेसिलाई (एमबी) कुष्ठ रोगी कहा जाता है। पीबी रोगी छह माह के इलाज में ठीक हो जाते हैं, जबकि एमबी रोगी का इलाज 12 माह तक चलता है।



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