हजरत इमाम हुसैन की याद में मना चेहल्लुम, कस्बे में पूरी रात निकला ताजिया जुलूस
सैदपुर। मोहर्रम के 40 दिनों बाद मनाए जाने वाले गम के पर्व व हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए चेहल्लुम पर कस्बे में जुलूस निकाला गया। ताजिया जुलूस को कई मुहल्लों में घुमाने के बाद विभिन्न जगहों की टोली रानी चौक पहुंची। देर रात तक ताजिया का भ्रमण कराया गया। इधर, सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर चौकी इंचार्ज पवन यादव व हैदर अली साथ चल रहे थे। इस दौरान कस्बे में रौजा द्वार से 3 ताजिया के साथ एक दुलदुल घोड़ा निकला। ताजिये में मातम करते मुस्लिम जन चल रहे थे। कर्बला पर पहुंचकर फातिहा पढा गया फिर दफन किया गया। वहीं दूसरे दिन रविवार को भी पैगंबर-ए-आजम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम के नवासे हजरत सैयदना इमाम हुसैन व उनके साथियों का चेहल्लुम पूरे अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। मौलाना असगर अली ने बताया कि शिया समुदाय में चेहल्लुम का विशेष महत्व है। ज्यादातर लोग अपने घरों पर इसाले शवाब के लिए कुरआन ख्वानी, फातिहा ख्वानी व दुआ ख्वानी किये। हजरत सैयदना इमाम हुसैन और उनके साथियों के वसीले से मुल्क में अमन शांति, भाईचारे की दुआ मांगी गई। अकीदतमंदों ने अपने घरों में कुरआन-ए-पाक की तिलावत की और अल्लाह व रसूल का जिक्र किया। इमाम हुसैन और उनके साथियों की कुर्बानियों के याद में पूरा दिन गुजरा। कर्बला और मजलिसों में जिक्रे इमाम हुसैन और दीन-ए-इस्लाम के लिए दी गई उनकी कुर्बानी को याद कर लोग गमगीन हो गए। चेहल्लुम कर्बला के शहीदों की शहादत को याद के लिए चेहल्लुम मनाया जाता है। चेहल्लुम मुहर्रम के 40वें दिन कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन मानवता की रक्षा करते हुए शहीद होने पर मनाया जाता है। इमाम हुसैन के साथ कर्बला के मैदान में उनके मात्र 72 वफादार सैनिक भी थे। कर्बला जंग समय के हिसाब से तो छोटी सी जंग थी लेकिन इस्लाम के इतिहास में लड़ाई सत्य और असत्य या अन्याय और न्याय के बीच की थी।