मातमी आयोजन मुहर्रम के आयोजन में शिद्दत से जुटे लोग, रोजाना कर रहे मातम, दिखा रहे बनेठी के करतब
सादात। इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम पर नगर सहित आसपास के मुस्लिम इलाकों में पूरी शिद्दत के साथ मातम, मजलिस व अखाड़ा हो रहा है। शिया मुस्लिम जहां प्रतिदिन सुबह से देररात तक मातम व मजलिस कर रहे हैं, वहीं सुन्नी मुसलमान नमाज-रोजा के साथ इबादत करते हुए अखाड़ा में लाठी व बनेठी आदि का करतब दिखा रहे हैं। मुहर्रम की पहली से लेकर दसवीं तारीख तक नगर में अलग-अलग कार्यक्रम होते हैं। सादात में मजलिस और मातम को बदस्तूर निभाने की परंपरा कायम रखने वाले सैयदबाड़ा मुहल्ला निवासी शिया समुदाय के प्रतिष्ठित व्यक्ति एसजेआई आब्दी उर्फ छब्बन ने बताया कि पहली से तीसरी मुहर्रम तक केवल मातम व मजलिस होती है। उन्होंने बताया कि मुहर्रम की चार तारीख को छह माह के दुधमुंहे बच्चे अली असगर की याद में झूला उठेगा। रात में होने वाले कार्यक्रम के दौरान कोपागंज की अंजुमन के साथ ही चिलबिलिया, बहरियाबाद, मजुई आदि जगहों के मुस्लिम समुदाय के लोग इसमें शिरकत करेंगे। पांचवीं मुहर्रम को सैयदबाड़ा मुहल्ले में मुहम्मद हैदर के इमामबाड़े में अली असगर की याद में तुर्बत होगा। छठवीं मुहर्रम पर जामा मस्जिद से मास्टर साहब के घर तक अली अकबर का ताबूत उठेगा। उन्होंने बताया कि सातवीं मुहर्रम की रात में कोट साहब के इमामबाड़े से उठकर मेंहदी का जुलूस बाजार तक जाने के बाद पुनः यहीं लौटकर मजलिस के बाद समाप्त होगा। आठवीं मुहर्रम को प्रसिद्ध दुलदुल (दुलजना) का जुलूस निकलेगा। नवीं मुहर्रम को दोनों अखाड़ों का ताजिया चौक पर बैठाया जाएगा। अगले दिन मुहर्रम की दसवीं तारीख को आशूरा कहा जाता है। आशूरा करबला में इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाएगा। इस दिन ताजिया व अलम के साथ सबसे बड़ा जुलूस निकलेगा। शिया मुसलमान जहां मातम करेंगे वहीं सुन्नी मुसलमान लकड़ी-बनेठी आदि का करतब दिखाएंगे। सादात के सैय्यदबाड़ा मुहल्ला स्थित कोट साहब के इमामबाड़ा में मंगलवार को हुई मजलिस को खेताब फरमाते हुए एसजेआई ने कहा कि अहले बैत से हमारी मोहब्बत उनके बताए रास्ते पर चलना और हमारे ईमान की निशानी है। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन व उनके घराने के लोगों ने हमेशा हक की आवाज बुलंद की है और हक की आवाज बुलंद करने वाले कभी रूसआ नहीं होते। उन्होंने कहा कि शहदात का त्यौहार मुहर्रम अमन और शांति का पैगाम देने वाला है, जो यह संदेश भी देता है कि धर्म और सत्य के लिए कभी नहीं झुकें। मुहर्रम के दौरान इमामबाड़ागाहों में मजलिस, मातम व नौहाख्वानी का दौर दसवीं तारीख तक चलता रहेगा।