इन पांच जांचों से बच सकती है एईएस मरीज की जान, जरूर कराएं जांच - सीएमओ
गोरखपुर। एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) मरीज की पांच जांचें अवश्य कराएं। साथ ही जापानीज इंसेफेलाइटिस, स्क्रबटाइफस, डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसी बीमारियों से जुड़ी जांचों के लिए नमूने जिला स्तर पर स्थापित सेंटीनल लैब में भेजना सुनिश्चित करें। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. सुधाकर पांडेय ने गुरुवार को एईएस नियंत्रण विषयक प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ये जानकारी दी। बताया कि एईएस कई बीमारियों का समूह है और उनका चिह्नांकन जांच के आधार पर किया जाता है। उच्च बुखार वाले मरीजों की लक्षणों के आधार पर सीएचसी-पीएचसी के स्तर पर ही सात प्रकार की जांचें कराई जानी हैं, जबकि पांच अनिवार्य जांचे जिला स्तर पर कराई जानी हैं। मरीज का समय से अस्पताल पहुंचना, स्थानीय स्तर पर समय से जांच और फिर जनपदीय स्तर की अनिवार्य जांच से बीमारी की शीघ्र पहचान और इलाज में मदद मिलती है। इसी उद्देश्य से चिकित्सा अधिकारी डॉ. हरिओम पांडेय और डॉ. सचिन गुप्ता के जरिये प्रशिक्षण दिलवाया जा रहा है। बताया कि अगर तेज बुखार के साथ मानसिक अवस्था में बदलाव हो रहा है तो बिना देरी किये मरीज को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया जाना चाहिए। शीघ्र इलाज मिलने से बीमारी की जटिलताएं कम हो जाती हैं। जिले में सक्रिय 23 ईटीसी पर ऐसे मरीजों के प्राथमिक उपचार की सुविधा उपलब्ध है। आवश्यकता अनुसार उच्च चिकित्सा केंद्र को रेफर किया जाता है। सीधे बड़े केंद्र तक ले जाने की गलती में होने वाली देरी बीमारी की जटिलाएं बढ़ा देंगी। उन्होंने बताया कि इस साल जनवरी से 30 सितम्बर तक तेज बुखार के 1228 मामले रिपोर्ट हुए, जिनमें से 57 केस एईएस के जिले में स्थापित ईटीसी पहुंचे। एईएस के 102 केस बीआरडी मेडिकल कालेज पहुंचे, जिनमें से 41 ऐसे थे जो सीधे बीआरडी मेडिकल कालेज पहुंच गये। का कि हमें लोगों की इसी प्रवृत्ति को रोकना है। बताया कि इस समयावधि में एईएस से 12 मौत हुई हैं। एईएस के कुल मामलों में से 50 फीसदी से अधिक का कारण स्क्रबटाइफस है जिसका वाहक चूहा और छछूंदर है। चूहे और छछूंदर से बचाव कर इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है। प्रशिक्षु चिकित्सक डॉ. एके देवल ने बताया कि प्रशिक्षण में बताया गया कि अगर बच्चे को झटका नहीं आ रहा है और सिर्फ बेहोशी की स्थिति है, तब भी एईएस हो सकता है। सात दिन के अंदर बुखार के साथ बेहोशी या झटके आने पर एईएस मरीज का लाइन ऑफ ट्रीटमेंट देना है। जेई-एईएस कंसल्टेंट डॉ. सिद्धेश्वरी सिंह ने बताया कि दो अलग-अलग बैच में 93 चिकित्सक प्रशिक्षित किये जाएंगे। इससे पहले 150 स्टॉफ नर्स प्रशिक्षित किये जा चुके हैं। कार्यक्र में यूनिसेफ की डीएमसी नीलम यादव, हसन फईम, पाथ संस्था के प्रतिनिधि राहुल तिवारी ने सहयोग किया। प्रशिक्षण एसीएमओ व वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के डॉ. एके चौधरी व डीएमओ अंगद सिंह ने दिया।