मंडलीय जेल पहुंची टीम, बंदियों और जेल स्टॉफ को अपने सामने खिलाई फाइलेरिया से बचाव की दवा
गोरखपुर। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गोरखपुर मंडलीय कारागार पहुंच कर जेल में बंद तीन सौ से अधिक बंदियों व स्टॉफ को फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाई । बंदियों को बीमारी के बारे में जानकारी दी गयी तो उन्होंने पूरे उत्साह के साथ दवा का सेवन किया । करीब 1900 बंदियों व छूटे हुए स्टॉफ को दवा खिलाने की जिम्मेदारी जेल के स्वास्थकर्मी निभाएंगे और अपने सामने ही दवा खिलाएंगे। इस मौके पर जेल के अधिकारियों ने भी दवा का सेवन किया । जिले में 10 से 28 अगस्त तक फाइलेरिया से बचाव की दवा के सेवन का कार्यक्रम चल रहा है। इसके तहत आशा, आंगनबाड़ी और स्वास्थ्यकर्मियों की टीम घर घर जाकर लोगों को अपने सामने फाइलेरिया से बचाव की दवा खिला रही है। इस दवा का सेवन दो वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को करना है। केवल गर्भवती और अति गंभीर बीमार लोग इस दवा का सेवन नहीं करेंगे। अभियान के दौरान भीड़भाड़ वाले स्थानों पर भी स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंच रही है और समूह में लोगों को दवा का सेवन करवा रही है। इसी कड़ी में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ एके चौधरी, जिला मलेरिया अधिकारी अंगद सिंह, सहायक मलेरिया अधिकारी सीपी मिश्रा और सहयोगी सुरेंद्र यादव की टीम ने मंडलीय कारागार पहुंच कर लोगों को दवा का सेवन करवाया । सौ से अधिक बंदियों व स्टॉफ ने टीम के सामने दवा का सेवन किया और करीब 200 स्टॉफ व बंदियों ने जेल के स्वास्थ्यकर्मियों के सामने दवा खाई। जेलर अरूण कुमार कुशवाहा ने खुद भी दवा का सेवन किया । उन्होंने बताया कि यह दवा सुरक्षित है और इससे कोई दिक्कत नहीं होती है। जेल के समूचे स्टॉफ और बंदियों को दवा का सेवन करवाया जाएगा । स्वास्थ्य विभाग की टीम ने दवा का सेवन करवाने के साथ साथ बीमारी की गंभीरता के बारे में भी जानकारी दिया है। दवा का सेवन खाली पेट नहीं करना है। अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने उपस्थित लोगों को बताया कि दवा खाने के बाद कुछ लोगों को जी मिचलाना, चक्कर आना या उल्टी जैसे लक्षण आएं तो घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा शरीर में फाइलेरिया के परजीवी होने के कारण हो सकता है, जो दवा खाने के बाद मरते हैं जिससे इस तरह की प्रतिक्रिया हो सकती है जो कुछ देर में स्वतः ठीक हो जाती है। जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कि फाइलेरिया से संक्रमित होने के बाद रोगी का पूरा जीवन दर्द और कठिनाई से बीतता है। इससे जुड़ी दिव्यांगता के कारण लोगों को अक्सर सामाजिक उपेक्षा का भी सामना करना पड़ता है। बीमारी से प्रभावित व्यक्ति की कार्यक्षमता भी कम हो जाती है, जिससे व्यक्ति की आजीविका और आर्थिक उन्नति दोनों प्रभावित होती है। लगातार पांच साल तक साल में एक बार यदि दवा का सेवन कर लेते हैं तो इस बीमारी से सुरक्षित बन सकते हैं ।