गाजीपुर : पीजी कॉलेज में संस्कृत की शोधार्थी ने ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ पर पेश किया समीक्षात्मक रिसर्च, जांच समिति ने की सराहना





गाजीपुर। पीजी कॉलेज के भाषा संकाय के तहत संस्कृत विभाग द्वारा पूर्व शोध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें संस्कृत की शोधार्थी रजनी सिंह ने अपने ‘ब्रह्मवैवर्तपुराण : एक समीक्षात्मक अध्ययन’ विषयक शोध प्रबन्ध व उसकी विषय वस्तु प्रस्तुत की। कहा कि ब्रह्मवैवर्त पुराण मुख्यतः वैष्णव पुराण है। इसके प्रमुख प्रतिपाद्य देवता विष्णु परमात्मा श्रीकृष्ण हैं। यह चार खण्डों में विभाजित है। ब्रह्मखण्ड, प्रकृति खण्ड, गणपतिखण्ड तथा श्रीकृष्णजन्मखण्ड। ब्रह्मखण्ड में सबके बीज रूप परमब्रह्म परमात्मा (श्रीकृष्ण) के तत्त्व का निरुपण है। प्रकृति खण्ड में प्रकृति स्वरूपा आद्याशक्ति (श्री राधा) तथा उनके अंश से उत्पन्न अन्यान्य देवियों के शुभ चरित्रों की चर्चा है। गणपतिखण्ड में (परमात्मास्वरूप) श्री गणेश जी के जन्म तथा चरित्र आदि से सम्बन्धित कथाएँ हैं। श्रीकृष्ण जन्मखण्ड में (परमब्रह्म परमात्मास्वरूप) श्री कृष्ण के अवतार तथा उनकी मनोरम लीलाओं का वर्णन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और उनकी अभिन्नस्वरूपा प्रकृति-ईश्वरी श्री राधा की सर्वप्रधानता के साथ गोलोक-लीला तथा अवतार-लीला का विशद वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ विशिष्ट ईश्वरकोटि के सर्वशक्तिमान् देवताओं की एकरूपता, महिमा तथा उनकी साधना-उपासना का भी सुन्दर प्रतिपादन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथाएँ अतीव रोचक, मधुर ज्ञानप्रद और कल्याणकारी है। वर्तमान जनमानस में व्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार आचरण करने से लोगों का हृदय आनन्दित होगा और उनमें व्याप्त बुराइयों के शमन में सहायता मिलेगी तथा समाज में चतुर्दिश शान्ति स्थापित होगी और सभी सुखी होंगे। इस मौके पर प्राचार्य डॉ. राघवेन्द्र पाण्डेय, डॉ. जी. सिंह, डॉ. एसडी सिंह परिहार, डॉ नन्दिता श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष डॉ समरेन्द्र नारायण मिश्र, डॉ अरुण यादव, डॉ रामदुलारे, डॉ कृष्णकुमार पटेल, डॉ अमरजीत सिंह, डॉ सत्येंद्र नाथ सिंह, डॉ योगेश कुमार, डॉ शिवशंकर यादव, डॉ विनय दुबे, डॉ कमलेश, प्रदीप सिंह आदि रहे।



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