आत्मा की मुक्ति के लिए 64 लाख योनियों के बाद मिलती है मानव योनी - संत त्रिवेणीदास
देवकली। क्षेत्र के निन्दोपुर मड़ई में चल रहे सात दिवसीय श्री शतचंडी महायज्ञ के पहले दिन रात में प्रवचन करते हुए महामण्डलेश्वर संत त्रिवेणी दास महाराज ने कहा कि परम पिता परमात्मा की कृपा से जीव को ये देव दुर्लभ शरीर मिलता है। मनुष्य को सत्कर्म करके इसे सार्थक बनाना चाहिए। कहा कि मानव योनी को कर्मयोनी भी कहा जाता है। यानी जो जैसा कर्म करेगा उसका वैसा ही फल उसे भुगतना होगा। कहा कि जीव को भौतिक सुखों के उपभोग के साथ ही आध्यात्मिक सुख को भी प्राप्त करना चाहिए तभी वो संसार के आवागमन के बंधनों से मुक्त हो सकता है। आत्मा का एकमात्र लक्ष्य ये मुक्ति ही होती है। इस मुक्ति को प्राप्त करने के लिए उसे 64 लाख योनियों में भटकना होता है और फिर अंततः उसे मानव जन्म देकर आत्मा की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया जाता है। जिसने इस योनी में भी मुक्ति का रास्ता नहीं ढूंढा उसे फिर से 64 लाख योनियों में भटकना होगा। बताया कि दुनिया के दुःखों को दूर करने वाले प्रभु श्रीराम हैं और श्रीराम के दुःखों को दूर करने वाले प्रभु हनुमान हैं। बताया कि सभी भगवान मानव शरीर लेकर आए और सभी ने शरीर छोड़ दिया लेकिन भगवान हनुमान आज भी दुनिया हैं। वो अमर हैं। इस मौके पर असीम भारती, राजू पाण्डेय, सुदर्शन यादव, मोहन, पारस, श्याम जी, रामजन्म, फूलचंद, रामचंद्र, शिवमूरत, झारखन्डेय, उदयनाथ, रजनू यादव आदि मौजूद थे।