बीत गया आषाढ़ लेकिन नहीं बरसे बदरा, पारंपरिक टोटकों का सहारा लेने को विवश हुए किसान



बिंदेश्वरी सिंह



खानपुर। आषाढ़ का पूरा महीना बीत गया लेकिन बरसात की आस पूरी नहीं हुई। मॉनसून का इंतजार कर रहे किसान अब इंद्रदेव को मनाने के पारंपरिक टोटकों और पूजा पाठ का सहारा लेने को मजबूर हैं। पहले गांव में महिलाएं वर्षा लाने के लिए खेतों में हल चलाती थी। ऐसा करने से बरसात होने लगती थी। आसमान में बादल भले ही उमड़ रहे हैं लेकिन बारिश की आस लगाए किसानों की उम्मीदें पूरी नहीं हो रही हैं। धान की रोपाई कर चुके किसान वर्षा नहीं होने से चिंतित है। उनका कहना है कि पहले की तरह गांव के बच्चों को लेकर काल कलौटी, उज्जर धोती, काले मेघा पानी दे की गीत गवाते हुए धूल में नहाने लोटने की परंपरा को पुनर्जीवित करना पड़ेगा। इसमें पहले बच्चे गांव में घरों के सामने कई बाल्टी पानी एकत्रित करके उसमें कीचड़ से सराबोर हो जाते हैं। सभी घरों से बच्चों को आटा, चावल, आलू, तेल, मसाला, हल्दी, नमक आदि खाद्य सामग्री दिया जाता है। इसके बाद बच्चे एक सहभोज कार्यक्रम आयोजित करते हैं। पहले यह कार्यक्रम गांवों में बिना किसी भेदभाव के बारिश नहीं होने पर होते थे। पर इस समय गांवों में एकरूपता का भाव नहीं होने के कारण यह कार्यक्रम कुछ गांव में ही आयोजित हो पाते हैं। बरसात होने की आस में किसान उम्मीद भरी निगाहों से बादल की तरफ टकटकी लगाए हैं। छिटपुट बूंदाबांदी हो रही है लेकिन खेतों में नमी पहुंचाने लायक अभी वर्षा नहीं हुई है। अच्छी वर्षा के लिए शिवालयों के अरघे भरे जाते हैं। शिवमंदिर में शिवलिंग के अरघा का जलनिकास बंद कर पूरा अरघा जल भरने पर शिवकृपा से अच्छी बरसात होती है।



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