सिर्फ फेफड़े नहीं बल्कि शरीर के किसी हिस्से में हो सकती है टीबी, 12 साल से कम उम्र के बच्चों के सामने होती है ये चुनौती, सॉफ्ट टारगेट होते हैं बच्चे
गाजीपुर। बच्चों में टीबी (क्षय) रोग के लक्षण पहचानना और समय से उनका इलाज करवाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। क्योंकि बच्चों में वयस्कों की तुलना में रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है। बच्चों का अपनी उम्र के हिसाब से कम विकास या वजन में कमी होना, टीबी के लक्षण हो सकते हैं। यदि बच्चों की भूख, वजन में कमी, दो सप्ताह से अधिक खांसी, बुखार और रात के समय पसीना आने जैसी समस्या हो रही हो तो इन्हे अनदेखा न करें, ये टीबी के लक्षण हो सकते हैं। उक्त जानकारियां जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ प्रगति कुमार ने देते हुए कहा कि टीबी एक संक्रामक रोग है जो फेफड़ों की टीबी से संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से फैलता है। बताया कि कुपोषित बच्चों में टीबी के जल्दी होने का खतरा रहता है। स्वस्थ बच्चे जब टीबी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो वो बीमार हो जाते हैं। यदि बच्चे को दो हफ्ते या उससे ज्यादा समय से लगातार खांसी आ रही हो तो जांच कराना आवश्यक है। कहा कि 12 साल से कम उम्र का बच्चा अगर टीबी ग्रसित भी है तो उनमें बलगम नहीं बनता है। इस कारण बच्चों में टीबी का पता लगाना मुश्किल होता है। बच्चे के स्वास्थ्य इतिहास और कांटैक्ट ट्रेसिंग के अनुसार ही उसका पेट से सैंपल (गैस्ट्रिक लवाज़) जांच के आधार पर ही टीबी का पता लगाया जाता है। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के लक्षण पहचानने के लिए बच्चों के अभिभावकों को जागरूक और सतर्क रहने की बेहद आवश्यकता है। बाल रोग विशेषज्ञ व एसीएमओ डॉ उमेश कुमार ने कहा कि ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता होता है कि टीबी कहीं पर भी हो सकती है। बच्चों में टीबी के 60 फीसदी मामले फेफड़ों से जुड़े होते हैं जबकि बाकी 40 फीसदी फेफड़ों के अतिरिक्त अन्य अंगों में होते हैं। इसके साथ ही ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि टीबी नाखून और बाल को छोड़कर कहीं भी हो सकता है। टीबी के मामलों में हर साल बढ़ोतरी हो रही है। एसीएमओ डॉ केके वर्मा ने बताया कि जो बच्चे कुपोषण, कैंसर, डायबिटीज़, एचआईवी या अन्य प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करने वाले रोगों से ग्रसित होते हैं या जिन बच्चों की माताएं गर्भावस्था के दौरान टीबी से ग्रसित रही हों या किसी टीबी ग्रसित व्यक्ति के साथ समय बिताया हो, उनमें टीबी से संक्रमित होने की संभावना सबसे अधिक होती है। जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया कि बच्चों को विभाग द्वारा दी जाने वाली दवा उनके स्वादानुसार कई फ्लेवर में होती हैं, जिसे घोलकर बच्चों को दिया जाता है। अपने पसंदीदा फ्लेवर में होने के कारण बच्चे आसानी से टीबी की दवा खा लेते हैं।