देवकली : क्यों मनाया जाता है जीवित्पुत्रिका पर्व, क्या है व्रत की महत्ता, जानें -





देवकली। ग्रामीण अंचलों में जीवित्पुत्रिका का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। निर्जला रहकर महिलायें पुत्र के दीर्घायु होने की कामना को लेकर व्रत व पूजन-अर्चन करके कथा सुनने की परम्परा है। किवदंतियों के अनुसार, महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने अर्जुन की पुत्रवधु उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। उत्तरा समर्पित कृष्णभक्त थीं, उन्होंने श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी (लक्ष्मी) का ध्यान किया और गर्भस्थ शिशु के रक्षार्थ प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र रोका और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने उत्तरा के गर्भ को अंदर से सुरक्षा कवच से ढंक दिया। जिस ब्रह्मास्त्र का पूरे ब्रह्माण्ड में कोई रोक नहीं सकता है, इसलिए उसका मान रखने के लिए ब्रह्मास्त्र ने उत्तरा का गर्भ नष्ट किया और पुनः उस गर्भ को भगवान कृष्ण और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने जीवित किया। इसलिए इस घटनाक्रम को जीवित्पुत्रिका कहा गया। पांडवों और उत्तरा ने भगवान कृष्ण और आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी की स्तुति की। उत्तरा ने माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी और जगत का पालन करने वाले कृष्ण रूप भगवान विष्णु से प्रार्थना किया कि इस दिन की याद में जो पुत्रवती स्त्री आपका व्रत और तीन दिन का अनुष्ठान करें, उनके पुत्र को मेरे पुत्र की तरह आप संरक्षण प्रदान करें।



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