अयोध्या में भी आए थे काम, क्रोध व लोभ, तीनों एक साथ मिले तो श्रीराम को राजगद्दी की जगह मिला वनवास - विनोद शास्त्री





देवकली। क्षेत्र के देवकली स्थित ब्रह्म स्थल परिसर में चल रहे 49वें मानस सम्मेलन के 6वें दिन संगीतमय प्रवचन किया गया। जहां झांसी से आये पं. विनोद शास्त्री ने कहा कि ईश्वर एक है लेकिन उसे पाने के रास्ते अनेक हैं। कहा कि ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में नहीं ढूंढना पड़ता, बल्कि वो सभी जगह विद्यमान है। कहा कि ईश्वर हमारे अन्दर मौजूद है लेकिन हम उसे इन नश्वर आंखों से नहीं देख सकते। एक सच्चा गुरू ही ईश्वर से साक्षात्कार करा सकता है। कहा कि भवसागर से पार होने के लिए श्रीराम कथा एक नौका के समान है। कहा कि श्रीराम के शासन काल में सभी लोगों का सम्मान होता था तो रावण के दरबार में उसके मुख्य सचिव माल्यवन्त जैसे लोगों का अपमान होता था। कहा कि अयोध्या में भी काम, क्रोध और लोभ आए। एक बार दशरथ को काम आया, कैकेई को क्रोध आया और दासी मंथरा को लोभ आया। जब काम, क्रोध व लोभ तीनों एक साथ मिले तो सुबह में राजा बनने जा रहे श्रीराम को 14 वर्ष के वनवास पर जाना पड़ा। इस मौके पर अर्जुन पाण्डेय, वीरेन्द्र मौर्य, नरेन्द्र मौर्य, अवधेश कुशवाहा, उमाशंकर आदि रहे। अध्यक्षता प्रभुनाथ पाण्डेय व संचालन संजय श्रीवास्तव ने किया।



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