सूदखोरों की राजधानी बन चुका है सिधौना, रातों रात अमीर होने के लालच में युवाओं का हो रहा तेजी से झुकाव



बिंदेश्वरी सिंह की खास खबर



खानपुर। इस समय खानपुर क्षेत्र का सिधौना एक प्रकार से पूरे प्रदेश के सूदखोरों की राजधानी बन चुकी है। बेरोजगारी और महंगाई से त्रस्त जनता के लिए साठ के दशक में छोटे पूँजीदारो की मदद के लिए निकाला गया सूदखोरी का ये कामयाब धंधा आज हजारों लोगों के धन समेटने का साधन बन चुका है। ग्रामीण क्षेत्रो से लगायत नगर और शहरों तक सूदखोरों का संक्रामक जाल सा बिछ गया है। इस क्षेत्र के सूदखोरों से पूर्वांचल व पूरे प्रदेश समेत उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, झारखंड तक शायद ही कोई बाजार इनसे अछूता हो। छोटे बड़े सभी दुकानदारों के लिए बैंक से कर्ज लेने और उसकी सरकारी प्रक्रियाओं में लगने वाले चक्कर से बचने के लिए लोग इन सूदखोरों के संपर्क में आते हैं और एक बार इस चक्कर में पड़ गए तो जीवन पर्यंत उसी दलदल में उलझ कर रह जाते हैं। मजे की बात ये है कि दुकानदारों को इन लोगों से संपर्क भी नही करना होता हैं। सूद का कारोबार करने वालों के अपने एजेंट होते हैं जो सभी बाजारों में दुकानदारों के सामने खुद को उनका सहयोगी, मददगार और पार्टनर के रूप में प्रस्तुत कर उन्हें ब्याज पर रुपये का ऑफर देते हैं। फिर प्रति महीने दस से बीस प्रतिशत तक के ब्याज की वसूली शुरू हो जाती है और मूलधन मिले न मिले लेकिन ब्याज बराबर वसूला जाता है। प्रशासन के नाक के नीचे चल रहा यह गोरखधंधा बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी और अनैतिक व्यापार का साधन बनता जा रहा है। चक्रवृद्धि ब्याज की तरह चलने वाला रुपया जब दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगता है तब सूदखोर रूपए लेने वाले दुकानदारों पर दबाव बनाने लगते हैं और कभी कभी स्थिति खतरनाक भी हो जाती है। साठ की दशक में कुछ लोगों को मदद के रूप में शुरू किया गया यह कारोबार आज इतना फल फूल गया है कि क्षेत्र के कुछ ही लोग ऐसे होंगे जो इस काम में शामिल न हों। कामकाजी हों या व्यापारी, भठ्ठा मालिक हो या सरकारी कर्मचारी, कुछ को छोड़कर लगभग सभी इस धंधे में जुटे हुए हैं। हैरत की बात ये है कि अब इस काम में कुछ महिलाएं और कुछ युवतियां भी कूद पड़ी हैं। रातों रात अमीर बनने का ख्वाब देखने वाली आज की युवा पीढ़ी का झुकाव तेजी से इस धंधे की तरफ होने का मुख्य कारण है कि इस धंधे में लगाई गई पूंजी बीस महीने में ही दुगनी हो जाती है। हालांकि सूदखोरी की त्रासदी से तंग आ चुके क्षेत्र के कई दुकानदारां ने अब न सिर्फ बाजार बदल दिया है बल्कि कुछ ने तो प्रदेश छोड़ दिया है और कुछ ने तो आत्महत्या तक कर ली है। कुछ ऐसे संवेदनहीन सूदखोर भी हैं जो आत्महत्या के बाद भी वसूली बंद नहीं करते और बची हुई रकम उनके परिजनों से वसूलते हैं। सूदखोरी के इस काले धंधे में लिप्त लोगों द्वारा कम समय मे ही अकूत संपति के मालिक बन जाते हैं जिसके चलते प्रशासन भी कमजोर वर्ग का साथ न देकर ऐसे मजबूत व रसूखदार लोगों का ही साथ देता है। आज भी ग्रामीण इलाकों में गरीब और सामान्य परिवार के लोगों के पास अचानक किसी मुसीबत, बीमारी या जरूरत के समय इन सूदखोरों के अलावा धन पाने का कोई दूसरा साधन नही हैं। ऐसे में गरीबों की जरूरत के आधार पर रकम का ब्याज तय किया जाता है। हालांकि केंद्र सरकार ने बैंकों को निर्देशित किया है कि वो बिना गारंटी के अंदर लोगों को तत्काल लोन उपलब्ध कराएं लेकिन बैंक भी सरकार के इस आदेश का खुलेआम उल्लंघन करते हैं। कोई अगर लोन के लिए बैंक जाता है तो वो न सिर्फ गारंटी की बात करते हैं बल्कि इतने नियम कानून व दस्तावेजों की मांग कर देते हैं कि गरीब व्यक्ति के पास सूद पर रूपया लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता। बहरहाल प्रशासन द्वारा इस काले कारनामे को प्रमुखता से चिह्नित कर अगर इस पर जल्द रोक नहीं लगायी गयी तो छोटे व्यापारियों सहित भोली भाली गरीब जनता का हाल और भी बुरा होता चला जाएगा।



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