सिधौना : सैदपुर क्षेत्र की इस रामलीला में नहीं होता रावण का दहन, ये है कारण -
सिधौना। पौराणिक कथानक रामचरित मानस पर जगह-जगह रामलीला के आयोजन शुरू हो गए हैं। इन लीलाओं में लोक परंपराओं और मान्यताओं का पालन लोग पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे हैं। लेकिन बहुरा गांव के 16 दिवसीय रामलीला में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। रामलीला के प्रबंधक कैलाश यादव ने बताया कि गांव की करीब सौ साल पुरानी रामलीला में सभी देव चरित्र का अभिनय ब्राह्मण पुत्रों द्वारा किया जाता है। जिनका लीला के दौरान प्रतिदिन किसी न किसी के घर में पूजन और भोजन का प्रबंध रहता है। शुद्ध सात्विक भाव से लोग लीला कलाकारों का आदर सम्मान करते हैं। बहुरा गांव में रामलीला की शुरुआत करने एवं लीलास्थल दान देने वाले स्व. अवध नारायण लाला के वंशज गांव छोड़कर बाहर बस गए हैं। लेकिन रामलीला मंचन के दौरान उनकी चौथी पीढ़ी के लोग प्रतिवर्ष लीला में मुकुट पूजन का कार्य करने जरूर आते हैं। गांव की परम्पराओं में इस पौराणिक महत्व वाले रामलीला में बुजुर्गों के बनाये नियम कायदों का पूरी तरह से पालन किया जाता है। बुधवार से रामलीला का मंचन कार्य शुरू हो गया है। समिति के अध्यक्ष रामतेज पांडेय ने बताया कि रामलीला की शुरुआत करने वाले विद्वतजनों का विचार था कि ब्राह्मण कुल में जन्में रावण का प्रभु श्रीराम द्वारा वध किये जाने के बाद ही रामलीला समाप्त कर दी जाये। यदि रावण के पुतले को अग्नि देकर पंचतत्व में विलीन करेंगे तो फिर पूरे गांव में शुद्धक लग जायेगा। इसके कारण गांव में अगले 13 दिनों तक कहीं आने जाने पर प्रतिबंध के साथ कोई भी शुभ कार्य नही किये जा सकेंगे। इन्ही मान्यताओं का ध्यान रख आज भी बहुरा की रामलीला समिति रावण का पुतला दहन नहीं करती है।