आखिर क्यों मनाते हैं 1 जनवरी को नया साल, कहां से आई ये परंपरा, पहले 1 जनवरी को नहीं बल्कि इस दिन मनाया जाता था नया वर्ष
जयपुर। नया साल हर वर्ष की पहली तारीख को मनाया जाता है लेकिन आखिर इसकी शुरूआत कहां से और कैसे हुई, ये सवाल भी कई बार हमारे दिमाग में कौंधता है लेकिन इसका समाधान नहीं हो पाता। इस सवाल का जवाब राजस्थान में शिक्षिका के पद पर तैनात डॉ. मोनिका रघुवंशी ने देने का प्रयास किया है। मोनिका बताती हैं कि यह एक प्राचीन रोमन रिवाज और रोमन देवता जैनस के नाम से निकला हुआ है। कहा कि जैनस के नाम से ही जनवरी माह का नाम पड़ा। जैनस शुरुआत, द्वार, संक्रमण, समय, द्वंद्व, द्वार, मार्ग और अंत के देवता थे। जनवरी महीने का नाम भी यहीं से आया है, क्योंकि जैनस को दो विपरीत चेहरों के रूप में चित्रित किया गया था। एक चेहरा अतीत की ओर देखता था तो दूसरा भविष्य की ओर देखता था। नए साल का जश्न मनाने के लिए रोमनों ने देवता जैनस से वादे भी किए। जिसके बाद से ही साल के पहले दिन यानी नए साल पर रिजाल्यूशंस यानी संकल्प लेने की परंपरा भी इसी प्राचीन परंपरा से उपजी है। 1 जनवरी को जैसे ही वर्ष शुरू होता था तो शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करने की प्रथा थी। कुछ ही समय बाद, 9 जनवरी को रोमन सीनेट से जुड़े एक पुजारी रेक्स सैक्रोरम ने जैनस को एक मेढ़े की बलि दी। बता दें कि 1 जनवरी का दिन हमेशा से साल का पहला दिन नहीं रहा है। बल्कि अतीत में नए साल के कुछ जश्न विषुव पर होते थे। एक ऐसा दिन जब सूर्य पृथ्वी के भूमध्य रेखा से ऊपर होता है और रात और दिन की लंबाई बराबर होती है। कई संस्कृतियों में मार्च या वसंत विषुव संक्रमण और नई शुरुआत का समय दर्शाता है और इसलिए उस विषुव के लिए नए साल का सांस्कृतिक उत्सव स्वाभाविक था। नए साल की शुरुआत के लिए सितंबर या शरद विषुव के भी अपने प्रस्तावक थे। जिसमें फ्रांसीसी रिपब्लिकन कैलेंडर था, जिसे फ्रांसीसी क्रांति के दौरान लागू किया गया था और 1793 के अंत से 1805 तक लगभग 12 वर्षों तक उपयोग किया गया था। उस समय नया वर्ष सितंबर विषुव में शुरू किया था। यूनानियों ने नया साल शीतकालीन संक्रांति पर मनाया, जो वर्ष का सबसे छोटा दिन भी होता है।