ढाई हजार सालों के इतिहास में पहले ऐसे शंकराचार्य रहे स्वामी स्वरूपानंद, हिंगलाज सेना की अध्यक्ष ने बताया इतिहास, जानें -
खानपुर। क्षेत्र के फरिदहां स्थित ऐतिहासिक मुक्तिकुटी धाम में श्रद्धालुओं ने ज्योतिष पीठ एवं द्वारका शारदा पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की श्रद्धांजलि सभा व वृहद भंडारा आयोजित किया गया। कहा कि शंकराचार्य के आध्यात्मिक और सनातन संस्कृति के उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हिंगलाज सेना की राष्ट्रीय अध्यक्ष साध्वी लक्ष्मीमणि शास्त्री ने कहा कि दिवंगत स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सनातन धर्म के ध्वजवाहक एवं भारतीय संस्कृति के पुरोधा थे। ऐसे महापुरुषों का परलोक गमन हमेशा ही देश, धर्म, समाज एवं संस्कृति के लिए दुःख का विषय है। परालौकिक स्वरूप के विषय में कुछ भी बोलना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। कहा कि शंकराचार्य के ढाई हजार सालों के इतिहास में ये पहली बार हुआ है जब स्वामी स्वरूपानंद न सिर्फ सबसे लंबे समय करीब 50 वर्षों तक शंकराचार्य रहे, बल्कि एक ही समय में दो-दो पीठों के पीठाधीश्वर रहे। कहा कि उनके जैसा दूसरा कोई शंकराचार्य न हुआ और शायद आगे भी न हो। कहा कि स्वामी स्वरुपानंद को भारत सरकार द्वारा भारत रत्न देना चाहिए। कहा कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी होने के नाते स्वामी स्वरूपानंद महाराज को तिरंगे के साथ राजकीय सम्मान के साथ ही संतों की तरह भी समाधि दी गई। अंतरराष्ट्रीय मानस कथा वाचक नीलमणि शास्त्री ने कहा कि स्वामी स्वरूपानंद महाराज का सरल जीवन और उत्तम चरित्र युवाओं और आध्यात्मिक लोगों के लिए प्रेरणा से परिपूर्ण है। मुक्तिकुटी धाम में सर्वसम्मति से स्वामी स्वरूपानंद महाराज की आदमकद मूर्ति स्थापना का निर्णय लिया गया। इस मौके पर जोगेंद्र सिंह, अजीत पाठक, बालकृष्ण पाठक, अरुण प्रकाश सिंह, जयप्रकाश सिंह, रामभद्र पाठक, कमलेश यादव, प्रदीप पाठक आदि रहे।