विश्व हिंदी दिवस विशेष : .........जब हिंदी की बिंदी को अंतर्राष्ट्रीय मजबूती देने 45 साल पूर्व मॉरीशस पहुंचे थे ‘बागी’
खानपुर। हिंदी भाषा की विशेषता और विशिष्ठता को जानने और समझने के लिए हमारे हिंदी के साहित्यकारों और शोधकर्ताओं ने भी दुनिया भर में जाकर हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार किया है। भारत देश से दूर अपने हृदय में भारतीयता बसाए मॉरीशस देश में आज से 45 वर्ष पूर्व खानपुर क्षेत्र के सिधौना निवासी डॉ रामजी सिंह बागी हिंदी का प्रचार प्रसार करने पहुंचे थे। वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की ओर से शोधार्थी रामजी बागी काशी विद्यापीठ के इकलौते ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें वर्ष 1975 में विदेशी धरती पर बसे देश मॉरीशस भेजा गया था। मॉरिशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ शिवसागर रामगुलाम और केंद्रीय मत्स्य मंत्री रामसुंदर मदन के साथ शिक्षा संस्कृति मंत्रियों के अभूतपूर्व सहयोग से सैकड़ों हिंदी साहित्यिक गोष्ठियों, सम्मेलनों, बैठकों में भाग लेकर हिंदी और हिन्दू सांस्कृतिक सभ्यता को विस्तारीकरण का रूप दिया। डॉ रामजी सिंह बागी कहते है कि हिंदी भाषा सभी भाषाओं और बोलियों की श्रृंगार शैली है। हिंदी भाषा विशाल जनसमूह की भाषा है, जो सीमाओं के बंधन को तोड़कर वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। हिन्दी संसार की निर्विवादित श्रेष्ठ और समृद्ध भाषा है। भारत के बाहर लगभग 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी का पठन-पाठन हो रहा है तथा विकसित तथा विकासशील देशों में इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती जा रही है। हिन्दी का परिवार वृहद और व्यापक बनता जा रहा है। रामजी बागी का कहना है कि विदेशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार का मार्ग वैश्विक संगोष्ठी और सम्मेलनों के माध्यम से निश्चय ही प्रशस्त होगा। देश की आजादी के बाद विदेशों के साथ हमारे राजनयिक और सांस्कृतिक संबंध अधिक सुदृढ़ हुए हैं और इस क्षेत्र में बहुत हद तक हिन्दी का भी योगदान रहा है। देश के प्रबुद्ध वर्ग और लेखकों साहित्यकारों और हिंदी प्रेमियों को गर्व है कि हिन्दी मात्र भारत में ही नहीं बल्कि संसार के अनेक देशों में बड़ी लोकप्रिय है।