गोरखपुर के एम्स जैसे बड़े मंच पर उपेक्षित व लाइलाज फाइलेरिया पीड़ितों को मिली आवाज, सर्वाइवर पूजा सिंह ने बयान की कहानी





गोरखपुर। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर में इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन का दो दिवसीय 26वां कांफ्रेस लाइलाज व उपेक्षित बीमारी फाइलेरिया के लिहाज से भी खास रहा। मंच पर फाइलेरिया उत्तरजीवी नेटवर्क की सदस्य पूजा सिंह ने भी इसके बाबत लोगों को जागरूक किया। जिससे इस उपेक्षित बीमारी के मरीजों को भी स्वर मिला। फाइलेरिया मरीजों की बात आई तो इसके उन्मूलन के प्रयासों के बारे में भी कई कहानियां सामने आईं। पूरा सत्र जीवंत बन गया और कार्यकारी निदेशक डॉ सुरेखा किशोर की उपस्थिति में हुई इस खुली चर्चा की सभी ने सराहना की। कांफ्रेंस के पहले दिन का आखिरी सत्र फाइलेरिया उन्मूलन का था, जिसके मॉडरेटर बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन में नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज इलिमिनेशन प्रोग्राम्स के कंट्री लीड डॉ भूपेंद्र त्रिपाठी रहे। उन्होंने इस लाइलाज बीमारी के विभिन्न पक्षों की जानकारी दी। पाथ संस्था के राज्य प्रतिनिधि डॉ शोएब अनवर और पीसीआई संस्था के प्रतिनिधि रणपाल सिंह ने भी फाइलेरिया की गंभीरता से सबको अवगत कराया। सीफॉर संस्था की कार्यकारी निदेशक डॉ अखिला शिवदास ने कार्यक्रम में सामुदायिक भागीदारी पर प्रकाश डाला और इसमें फाइलेरिया नेटवर्क के प्रयासों को साझा किया। इसी क्रम में फाइलेरिया नेटवर्क की सक्रिय सदस्य सदस्य पूजा सिंह को अपनी कहानी के लिए आमंत्रित किया गया। पेशे से शिक्षिका पूजा ने बताया कि करीब 10-12 साल पहले वह फाइलेरिया से ग्रसित हुई थीं। उन्हें फाइलेरिया हुआ तो वह भी इस बीमारी से अपरिचित थीं। जब उन्होंने बीमारी के बारे में बताया तो उनके जानने वाले लोगों ने तरह तरह की जड़ी बूटी और गैर वैज्ञानिक उपायों से यह बीमारी ठीक होने की सलाह दी। वह लोगों की सलाह पर भटकती रहीं। धीरे-धीरे परेशानी बढ़ने लगी और पैर में दर्द और सूजन बढ़ता गया। एक बार तो सूजन इतना अधिक बढ़ गया कि पैर से पानी का रिसाव होने लगा। दर्द इतना भयानक था कि वह कई रातें सो नहीं पाईं। उन्होंने कई डॉक्टर को दिखाया पर कोई सही इलाज नहीं मिला इस कारण से उन्हें अपना अध्यापक का काम छोड़ना पड़ा और इससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई। बीमारी के कारण उन्हें सामाजिक उपेक्षा और भेदभाव भी झेलना पड़ा। लोगों को यह लगता था कि उनके पैर के पानी से उन्हें भी संक्रमण हो जाएगा। वह हीन भावना का शिकार होने लगीं। वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होने लगीं। इसी बीच पूजा के गांव में स्वास्थ्य विभाग द्वारा सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च संस्था के सहयोग से फाइलेरिया रोगी नेटवर्क का गठन किया गया और नियमित बैठकें होने लगीं। पूजा भी इसमें भाग लेने लगीं और विशेषज्ञों से बीमारी के बारे में कई प्रमुख जानकारी ली और देखभाल के तरीके सीखे। इससे उनके मन में सकारात्मकता का संचार हुआ। व्यायाम और फाइलेरिया प्रभावित अंग की देखभाल से उन्हें आराम मिला है और वह आज दूसरे लोगों को इस बीमारी के प्रति व्याप्त भ्रांतियों के बारे में जागरूक कर रही हैं। पूजा की कहानी सुनने के बाद सत्र में इस मुद्दे पर जीवंत चर्चा हुई। गोरखपुर के जिला मलेरिया अधिकारी अंगद सिंह ने कहा कि सहयोगी संस्था पीसीआई और सीफार तथा फाइलेरिया रोगी नेटवर्क की पहल से जिले में कई अभिनव प्रयास हुए हैं। उन्होंने पिपराईच ब्लॉक के महराजी गांव का भी उदाहरण दिया जहां अभियान के दौरान 100 प्रतिशत परिवारों को दवा का सेवन कराया गया और प्रवासी लोगों को भी घर वापस आने पर फाइलेरिया कार्नर के जरिये दवा खिलाया जा रहा है। कार्यक्रम संयोजक डॉ हरिशंकर जोशी ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि एम्स में बने बूथ के जरिये बड़े पैमाने पर लोगों ने इस बार फाइलेरिया से बचाव की दवा का सेवन किया है। खुली चर्चा में इस बात पर जोर दिया गया कि समाज के प्रभावशाली लोग जब दवा का सेवन करेंगे तो आमजन भी बचाव की दवा खाएंगे और इस बीमारी का उन्मूलन संभव होगा। चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को इस दवा का सेवन सबसे पहले करना चाहिए।



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