फाइलेरिया दवा को न खाना, यानी अपने जीवन को दांव पर लगाना, 51 लाख में से 29 लाख खा चुके हैं दवा





गोरखपुर। फाइलेरिया उन्मूलन के लिए जिले में 12 मई से शुरू हुए सामूहिक दवा सेवन कार्यक्रम (एमडीए) के दौरान लोग समझदारी की मिसाल पेश कर रहे हैं। खुद तो दवा खा ही रहे हैं एक दूसरे को समझा कर दवा खिलवा भी रहे हैं। जिले में 51 लाख लोगों के सापेक्ष 29 लाख लोग दवा का सेवन कर चुके हैं। पहली बार मंडलीय कारागार, पं. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, मोहद्दीपुर गुरूद्वारा, नागरिक सुरक्षा जैसी संस्थाओं को इस अभियान से जोड़कर वहां के लोगों को दवा का सेवन करवाया गया। खोराबार ब्लॉक के रहने वाले 24 वर्षीय अंकित सिंह पं. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रनेता हैं। वह बताते हैं कि फाइलेरिया रोग की भयावहता के बारे में उन्हें पहली बार इतनी वृहद जानकारी मिली और दवा का सेवन का महत्व उन्हें समझ में आया। प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल (पीसीआई) के प्रतिनिधि एमडीए अभियान से पहले ही उनके पास आए थे और उन्हें बीमारी व अभियान के बारे में बताया था। जब अभियान शुरू हुआ तो स्वास्थ्यकर्मियों के साथ संस्था के लोग पुनः आए और उनके सामने ही दवा का सेवन किया। अंकित ने मोहल्ले के लोगों को भी दवा खाने के लिए प्रेरित किया और विश्वविद्यालय के छात्रों को भी प्रेरित कर रहे हैं। सहारा इस्टेट सोसायटी के अध्यक्ष व चिकित्सक डॉ एपी त्रिपाठी का कहना है कि 56 साल की उम्र में पहली बार उन्होंने फाइलेरिया की दवा सेवन कार्यक्रम के प्रति स्वास्थ्य विभाग का इस प्रकार का प्रयास देखा है। उनसे स्वास्थ्य विभाग और पीसीआई संस्था के लोगों ने संपर्क किया और बताया कि सोसायटी में लोग दवा के प्रति रूचि नहीं दिखा रहे हैं। इसके बाद उन्होंने सोसायटी के व्हाट्सएप ग्रुप में दवा की महत्ता का संदेश भेजा और इसके लिए कैंप का आयोजन किया। लोगों से व्यक्तिगत तौर पर भी आग्रह किया। लोगों के मन से यह भ्रम दूर किया कि दवा का सेवन केवल उन्हीं लोगों को करना है जिन्हें फाइलेरिया है। यह भी बताया कि दवा खाने से कोई नुकसान नहीं होगा। अगर शरीर में फाइलेरिया के परजीवी होंगे तो उनके मरने से उल्टी, सिरदर्द, मिचली जैसे लक्षण आ सकते हैं जो स्वतः ठीक हो जाएंगे। उनकी कालोनी में 1000 से ज्यादा लोग दवा खा चुके हैं। जिला मलेरिया अधिकारी अंगद सिंह का कहना है कि शरीर में मौजूद फाइलेरिया के जीवाणु दस से पंद्रह साल बाद और कभी-कभी बीस साल बाद लक्षण प्रदर्शित करते हैं। इस बीमारी के लक्षणों में हाथ, पैर, स्तन में सूजन, हाइड्रोसिल, पेशाब में जलन प्रमुख तौर पर हैं। हाइड्रोसिल की तो राजकीय अस्पतालों में निःशुल्क सर्जरी हो जाती है लेकिन हाथीपांव का फाइलेरिया मरीज ठीक नहीं हो पाता है। उसका जीवन बोझ बन जाता है। ऐसे मरीजों को भी चार-चार महीने के अंतराल पर 12 दिन तक निःशुल्क दवा दी जाती है ताकि उसकी बीमारी की जटिलताएं न बढ़ें और हाथीपांव में ठहराव आ जाए। फाइलेरिया का वाहक क्यूलेक्स मच्छर गंदे पानी में पनपता है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फाइलेरिया का संक्रमण फैलाता है। इस मच्छर से बचाव के सभी आवश्यक उपाय करने चाहिए, साथ में हर हाल में फाइलेरिया रोधी निःशुल्क दवा डीईसी और एल्बेंडाजॉल का सेवन खाना खाने के बाद ही करना चाहिए। पांच साल तक साल में एक बार लगातार दवा का सेवन करने से फाइलेरिया से बचा जा सकता है। दवा का सेवन दो वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों (गर्भवती और गंभीर तौर पर बीमार लोगों को छोड़ कर) सभी को करना है। एमडीए अभियान के तहत सिविल कोर्ट गोरखपुर बार सभाकक्ष में कैम्प का आयोजन बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज पाण्डेय को दवा खिला कर किया गया। इस मौके पर 300 अधिवक्ताओं ने दवा का सेवन किया। सहायक मलेरिया अधिकारी राजेश चौबे, चन्द्र प्रकाश मिश्रा, मलेरिया निरीक्षक राहुल सिंह, पीसीआई संस्था के जिला समन्वयक प्रणव पाण्डेय, ब्लाक समन्वयक राम मनोहर त्रिपाठी, ब्लॉक समन्वयक युगेश तिवारी मौजूद रहे।



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