सरकार व सामाजिक संगठनों के खोखले दावों की पोल खोलती दिखी मासूम, विश्व महिला दिवस पर कूड़े के ढेर में तलाश रही थी भविष्य



आकाश बरनवाल



सैदपुर। एक तरफ पूरी दुनिया महिला सशक्तिकरण दिवस मना रही है और भारत में भी सरकारी तंत्र द्वारा महिलाओं की स्थिति में सुधार के बड़े-बड़े दावे भी किए जा रहे हैं लेकिन कई बार स्थितियां इससे बेहद इतर व दुखदायी दिखती हैं। सोमवार को इसी तरह जब पूरी दुनिया महिला सशक्तिकरण दिवस मनाकर महिला हितों में अच्छी-अच्छी बातें कह रही थी तो सुबह करीब 12 बजे कोतवाली से कुछ कदम दूर एक कूड़े के ढेर पर एक मासूम बच्ची कूड़े के ढेर में से अपना भविष्य चुन रही थी। कूड़े के ढेर से कुछ कबाड़ जैसी चीजों को बीनकर उसे बेचकर परिवार चलाने वाली उस बच्ची ने जैसे ही खुद की फोटो खिंचती देखी तो अपना मुंह ढंकना चाहा, जैसे उसे पता हो कि ये काम उसकी उम्र के बच्चों का नहीं है। लेकिन वो विकास के खोखले सरकारी दावों पर यकीन करके खुद को व खुद के परिवार को धोखा तो दे सकती है लेकिन अपने व अपने परिवार के पेट को उन दावों से धोखा कैसे दे। ऐसे में वो बच्ची कूड़े के ढेर से कूड़ा चुनकर बेचने की चाह में थी। उस मासूम से जब ये पूछा गया कि आज क्या है, आपको पता है तो उसने मुंह बिचकाकर कहा कि ‘हम का जानीं।’ बहरहाल, इस मासूम को देखकर सिर्फ यही समझ में आया कि सरकार हो या अधिकांश सामाजिक संस्थाएं, वो सिर्फ उन्हीं के हितों के लिए खड़ी होती हैं, जहां से उन्हें सामाजिक चर्चा का डोज मिले। यानी उनके द्वारा किए जाने वाले कामों को जिस जगह से पब्लिसिटी नहीं मिलती, उनके लिए सरकारी तंत्र या सफेदपोश कार्यकर्ता भी नहीं खड़े होते। बहरहाल, विश्व महिला दिवस का एक और साल सकुशल बीत गया और ये मासूम अब भी किसी कूड़े के ढेर में अपना भविष्य चुन रही होगी।



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